पिछले 2 सप्ताह से जारी किसान आंदोलन से सभी विपक्षी दल उत्साहित है पिछले 6 सालों से लगातार ऊंचे मनोबल से काम कर रही नरेंद्र मोदी सरकार पहली बार एक ऐसे भावनात्मक मुद्दे में उलझी है जहां वह कठोर रवैया नहीं अपना पा रही है क्योंकि मामला देश के अन्नदाता देश के किसानों से जुड़ा हुआ है इसीलिए बीजेपी और केंद्र सरकार बेहद नरम रवैया अपनाते हुए लगातार किसानों को समझाने की कोशिश में जुटी है।
वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी समेत तमाम भाजपा विरोधी पार्टियां इसे अपने लिए “फायदे का बड़ा मौका” मानकर चल रही है विपक्षी दलों के लिए किसानों का मजबूत आंदोलन राजनीतिक संजीवनी की तरह हैl. उन्हें लगता है कि बीजेपी यदि किसानों की सारी बातें मान लेती है तो बीजेपी की पराजय होगी उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा और यदि बीजेपी किसानों की बात नहीं मानती तो किसान और अधिक नाराज होंगे आंदोलन बड़ा होगा और बीजेपी को फिर भी सियासी नुकसान होगा।
ऐसे में हर तरह से बीजेपी का नुकसान होगा इसलिए आंदोलन ठंडा ना होने पाए इसके लिए विपक्षी दल खास तौर पर काग्रेस पार्टी पूरा जोर लगाए हैं।
आज कांग्रेश के नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में सीताराम येचुरी शरद पवार समेत पांच विपक्षी नेताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करते हुए यह कहा कि हर हाल में कृषि कानूनों को वापस होना चाहिए उन्होंने राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की मांग की।
मुलाकात के बाद मीडिया से बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए यह तीनों कानून लाए हैं और किसानों का नुकसान करवा रहे हैं
उन्होंने किसानों से अपील की कि, किसी कीमत पर पीछे ना हटे आज यदि किसान मजबूती से नहीं खड़े हुए तो उन्हें हमेशा के लिए खामोश कर दिया जाएगा।
राहुल गांधी की बातों से स्पष्ट है कि वह यह नहीं चाहते कि किसी भी कीमत पर सरकार और किसानों के बीच कोई समझौता हो वह चाहते हैं कि मामला आर पार की लड़ाई में तब्दील हो और हर तरह से यह संदेश जाए कि सरकार ने गलत किया है सरकार या तो खुद अपनी गलती मान ले या फिर किसानों के दबाव में कानूनों को वापस करें।
रिपोर्ट – आलोक कुमार