*केंद्र सरकार द्वारा SC ST की मांगे मानने के बाद भी राजनीतिक फायदे के लिए हिंसक प्रदर्शन*..

 रिपोर्ट -आदित्य कुमार
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के द्वारा SC ST का एक्ट का दुरुपयोग रोकने संबंधी आदेश को लेकर फैलाए जा रहे हैं अफवाहों के बीच दलित संगठनों कि भारत बंद का आंशिक असर देखा जा रहा है ..ज्यादातर स्थानों पर बाजार तो खुले हैं लेकिन अनेक जनपदों में प्रदर्शनकारियों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अपने वादे से मुकरते हुए हिंसा का रास्ता अपनाया है .. जबकि ज्यादातर हिस्सों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए हैं ..कई जनपदों में हाईवे पर जाम लगाया गया है रेल सेवाओं को रोका गया है हिंसा तोड़फोड़ और आगजनी भी की गई है.. जिसकी वजह से आम जनता को मुश्किल हो रही है

…वही केंद्र सरकार ने पहले ही यह संकेत दे दिया था कि वह दलित संगठनों की मांग मानने के लिए तैयार है और सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल करने को तैयार है.. और आज केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दलित संगठनों के मांग के अनुरूप पुनर्विचार याचिका दाखिल भी करवा दी ..इसके बावजूद देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन जारी रहना अपने-अपने चिंता की बात है.. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में लाभ हासिल करने के लिए और दलित वोट बैंक को अपनी ओर खींचने के लिए कुछ दलों के द्वारा यह हिंसा प्रायोजित की जा रही है ..और इसीलिए सरकार द्वारा दलित संगठनों की बात माने जाने के बावजूद भारत बंद और हिंसक प्रदर्शनों को बढ़ावा दिया जा रहा है ..2014 के लोकसभा चुनाव में दलित और ओबीसी वर्गों का समर्थन भाजपा को बड़े पैमाने पर मिला था और 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में दलितों को भाजपा से अलग करने के लिए एक बड़ी राजनीतिक योजना के तहत देश भर से कथित दलित उत्पीड़न की घटनाओं को प्रचारित किया जा रहा है . दरअसल बीते 20 मार्च को एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एससी एसटी एक्ट के दुरुपयोग से रोकने संबंधी निर्णय दिया था जिसके बारे में लोगों ने अफवाह फैला दिया कि केंद्र सरकार एससी एसटी एक्ट को निष्प्रभावी या संशोधित करना चाहती है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने केवल दुरुपयोग रोकने की बात कही थी और गिरफ्तारी के पहले पुलिस अधिकारी से जांच करने की बात कही थी .. जानकारों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या करके समाज में अफवाह और दुष्प्रचार फैला कर व्यापक हिंसा फैलाने की राजनीतिक योजना बनाई गई है… खुफिया एजेंसियों ने केंद्र और राज्य सरकार को इसके लिए पहले ही होशियार किया था लेकिन इसके बावजूद कई जिलों में आम जनता को गुमराह करके आंदोलन को फैलाने में प्रदर्शनकारी सफल रहे.. पुलिस प्रशासन ने पर्याप्त तैयारियां नहीं की जिसके चलते हिंसा आगजनी रोड जाम और रेल रोकने में प्रदर्शनकारियों सफल रहे …और पुलिस प्रशासन की लापरवाही की कीमत साधारण यात्रियों और राहगीरों को चुकानी पड़ी ..इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव गृह ने कहा है…
कि मेरठ, हापुड़, आगरा और गाजियाबाद में हुई हिंसा प्री-प्लानिंग का हिस्सा प्रतीत हो रही है. हमारी अपील है कि लोग तोड़फोड़ और आगजनी न करें. उन्होंने कहा कि सभी जिलों से लगातार संपर्क में है. फिलहाल स्तिथि नियंत्रण में है. हिंसक प्रदर्शन वाले जिलों में अतिरिक्त पुलिस भेजा गया गया है.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. लोग धैर्य बनाए रखें. उन्होंने बताया कि गाज़ियाबाद से हापुड़ और मुरादाबाद से मेरठ में बड़ी संख्या में पीएसी और आरएफ भेजी गई है. मेरठ में दो बटालियन पीएसी और एक बटालियन आरएएफ भेजी गई है जबकि हापुड़ में एक-एक बटालियन पीएसी और आरएफ भेजी गई है.

गृह विभाग ने यूपी के सभी जिला में एलर्ट जारी करते हुए डीएम एसपी को आदेश जारी कर आगजनी व तोड़फोड़ पर सख्ती बरतने को कहा गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी लोगों से कानून हाथ में न लेने का अनुरोध किया है. उन्होंने कहा है कि सरकार दलितों के साथ है. बातचीत से ही समस्या का हल निकलेगा.

इस बीच भारत बंद के दौरान पशिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिला. आगरा, मेरठ, बागपत, सहारनपुर बुलंदशहर, हापुड़ और गाजियाबाद में उग्र प्रदर्शनकारियों ने जमकर उत्पात मचाया. तोड़फोड़, पत्थरबाजी और आगजनी में कई बसों, गाड़ियों और बाइकों को फूंक दिया गया. पत्थरबाजी में कई पुलिस वाले भी घायल हुए हैं. कई ट्रेनों को रोका गया जबकि कई हाईवे पर जाम लगाकर प्रदर्शन किया गया.

दरअसल, 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी. हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया गया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना होगा.

*बाराबंकी सफेदाबाद
सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ सोमवार को नगर कोतवाली अन्तर्गत सफेदाबाद चौराहे के केवाड़ी मोड़ पर हज़ारों एस सी एस टी छात्रों ने देखिए कैसे जाम किया एन एच 28 और क्या है उनकी मांगे???*

मौके पर पहुचे प्रशाशन तथा भारी पुलिस बल ने प्रदर्शनकारी छात्रों से हाइवे को खाली करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने उनकी नहीं सुनी।फिर कांग्रेसी नेता तनुज पुनिया के पहुँचने पर छात्रों ने राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन सी ओ सदर को दे कर हाइवे खाली किया।