केदारनाथ हादसे में हजारों की मौत के बाद भी बीजेपी की सरकार नहीं चेती इसलिए हुआ चमोली हादसा!

2013 में केदारनाथ क्षेत्र में आई भयंकर तबाही में हजारों लोगों ने अपनी जान गवा दी थी इनमें से हर कई हजार लोगों की लाशें आज भी नहीं मिली बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के साथ-साथ तीर्थयात्री भी मारे गए थे वैज्ञानिकों ने बताया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हिमालयन क्षेत्र में अंधाधुंध बिल्डिंगों के निर्माण बढ़ती आबादी और प्रदूषण के चलते पहाड़ों पर जमी बर्फ तेजी से पिघल रही है क्षेत्र का वातावरण बदल रहा है तापमान बढ़ रहा है और क्षेत्र में पहाड़ों पर मौजूद करोड़ों टन बर्फ अब तेजी से पिघल रही है।

कभी-कभी अचानक बर्फीले पहाड़ जिसे ग्लेशियर भी कहा जाता है टूट कर नदियों में गिर पड़ते हैं और नदियों का पानी 10 गुना से लेकर 100 गुना अधिक जल राशि और रफ्तार के साथ दौड़ पड़ता है ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि उत्तराखंड ही नहीं कई प्रदेशों से गुजरने वाला हिमालयन क्षेत्र बढ़ती आबादी बढ़ते निर्माण प्रदूषण और बढ़ते तापमान के चलते प्रभावित हो रहा है।

एक तरफ तो पहाड़ों और चट्टान विकास के नाम पर हो रही और अवैज्ञानिक छेड़छाड़ से कमजोर हो रहे हैं दूसरी तरफ बढ़ती वार्मिंग से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं केदारनाथ हादसे के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाई गई विशेषज्ञों की कमेटी ने सरकार को यह सुझाव दिया था कि हिमालयन क्षेत्र में अधिक बांध ना बनाए जाएं वहां लोगों की आबादी पर नियंत्रण किया जाए भवनों के निर्माण पर नियंत्रण किया जाए पूरे क्षेत्र को प्रदूषण और मानवीय कारणों से बढ़ रहे तापमान से नियंत्रित किया जाए लेकिन वैज्ञानिकों के सुझाव को सरकार ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया और केंद्र और राज्य में बीजेपी सरकार आने के बाद भी हिमालयन क्षेत्र की प्राकृतिक सुरक्षा को लेकर लगातार लापरवाही जारी है।

पहाड़ी नदियों और ग्लेशियर्स के मुहाने पर सस्ती बिजली बनाने की लालच में कई जलविद्युत परियोजनाएं लगा दी गई जिसकी वजह से नदियों के प्राकृतिक वेद को बाधित कर दिया गया इतना ही नहीं पहाड़ों के बीच की संवेदनशील भूमि पर लाखों क्यूसेक जल का भराव किए जाने से भयंकर दबाव उत्पन्न किया जा रहा है जिसके चलते आसपास के पहाड़ों की पकड़ कमजोर हो रही है भू छेत्र पर अनुचित दबाव बन रहा है और यह सारी परिस्थितियां हिमालयन क्षेत्र के संतुलन को बिगाड़ रही हैं ।

जानकारों के मुताबिक 2 दिन पहले चमोली में हुआ हादसा सरकार के ऐसे ही गैर जिम्मेदार कारगुजारी का परिणाम है न तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इस तरफ ध्यान दे रही है और ना ही उत्तराखंड की त्रिवेंद्र रावत सरकार।

खुद को पर्यावरण और संस्कृति के प्रति अधिक चिंतनशील होने का दावा करने वाले बीजेपी के नेताओं का रवैया इस मामले में बहुत ही निराशाजनक है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने हाल ही में ट्वीट करके इस तरफ इशारा भी किया है। नरेंद्र मोदी सरकार उत्तराखंड समेत सभी हिमालयन क्षेत्रों में चौड़ी सड़कें बनवा रही है पहाड़ों को काटा जा रहा है लेकिन इसके दुष्परिणामों की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है । पहाड़ी क्षेत्र में चौड़ी सड़कें बनेंगी तो आवागमन बढ़ेगा पूरे देश के लोग पहाड़ी क्षेत्रों में बेहतर पर्यावरण की वजह से अपने घर बनाते जा रहे हैं पिछले कुछ दशकों में हिमालयन क्षेत्रों में जनसंख्या कई गुना बढ़ी है हजारों बहुमंजिला इमारतें भी पहाड़ों पर बिना सोचे समझे बनाई जा रही हैं जो कि पहाड़ों को ओवरलोड कर रही हैं और इसीलिए ऐसे हादसे बार-बार हो रहे हैं जिनकी कीमत गरीबों और मजदूरों को चुकानी पड़ रही है।

चमोली हादसे में 200 से भी ज्यादा लोगों के मरने की आशंका जताई जा रही है 30 से अधिक राशि निकाली जा चुकी हैं मृतकों में ज्यादातर मजदूर हैं तकनीकी कर्मचारी हैं जो जल विद्युत परियोजनाओं पर काम कर रहे थे।

ऐसे में फिर यह मुद्दा गरम है लेकिन लापरवाही सरकार कठोर निर्णय लेने की बजाए मुआवजे और जांच की चर्चाओं में असली मुद्दे को किनारे रख देती है।
पहाड़ों को जनसंख्या के बढ़ते दबाव से बचाना होगा पहाड़ों को प्रदूषण से बचाना होगा नहीं तो पहाड़ नाराज होकर ऐसे ही विनाश की गाथा लिखते रहेंगे।

उत्तराखंड से आलोक नेगी के साथ आलोक मिश्रा की रिपोर्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *