*निजीकरण के विरोध व पुरानी पेंशन बहाली के लिए बिजली इन्जीनियरों ने भाजपा , काँग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों को भेजा पत्र*


ऑल इण्डिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन ने भाजपा, काँग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को पत्र भेजकर मांग की है कि वे बिजली सेक्टर और बिजली कर्मचारियों के हितों से जुड़े ज्वलन्त विषयों को अपने चुनाव घोषणापत्र में समुचित स्थान दें | 

ऑल इण्डिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और अन्य राजनीतिक दलो के अध्यक्षों को प्रेषित पत्र में बिजली के निजीकरण की नीति से हो रहे भारी नुक्सान और आम जनता पर पड़ रही महँगी बिजली की मार के साथ ही बिजली कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाली और संविदा व् ठेके के कर्मचारियों को नियमित करने का सवाल भी उठाया है| 

पत्र में लिखा गया है, कि विगत वर्षों में बिजली और कोयला क्षेत्र के निजीकरण के प्रयासों के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं| बिजली के क्षेत्र में निजी घरानों को मनमानी छूट देने का नतीजा यह है कि लगभग 02.40 लाख करोड़ रु के बिजली संयंत्र ठप्प पड़े हैं, और स्ट्रेस्ड असेट हो गए हैं, जिसका खामियाजा इन्हे कर्ज देने वाले सरकारी क्षेत्र के बैंकों को भी उठाना पड़ रहा है| केंद्रीय विद्युत् प्राधिकरण को शक्ति देने की बात भी घोषणापत्र में हो जिससे भविष्य में मनमानी परियोजनाएं न बनने पाएं| 

बिजली फेडरेशन ने मांग की है कि राजनीतिक दल यह वायदा करें कि वे एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर ( जिसमे बिजली कर्मचारी व् उपभोक्ता भी हों ) इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 की समीक्षा करेंगे, खासकर जल्दबाजी में बिजली बोर्डों का विघटन कर कई कार्पोरेशन बनाये जाने के दुष्परिणामों और निजीकरण हेतु किये जाने वाले और संशोधनों विशेषतया इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2014 /2018 को पूरी तरह समाप्त करने पर विचार करेंगे| उच्च स्तरीय समिति का मुख्य उद्देश्य बिजली निगमों का एकीकरण कर बिजली बोर्ड निगम का पुनर्गठन करना होगा जिसमे बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण एक साथ हों| 

फेडरेशन ने यह भी लिखा है कि ठेकेदारी प्रथा समाप्त कर सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करने और पुरानी पेंशन बहाली का वायदा भी सभी राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में करे जिससे समय रहते देश के 25 लाख बिजली कर्मी और उनके परिवार यह निर्णय ले सकें कि वे आगामी लोकसभा चुनाव में उन्हें वोट दें या न दें |