निर्बल भारतीयों को “बाहरी-प्रवासी” कहकर “वोट पिपासु क्षेत्रवादी नेताओं” ने संविधान की धज्जियां उड़ाई हैं!

रिपोर्ट – दीपेश

जब अपने ऊपर आती है तो नेता संविधान की दुहाई देते हैं लेकिन जब घटिया सियासत करनी होती है तो हमारे नेता और संविधान के झंडाबरदार खुद ही संविधान की धज्जियां उड़ाने लगते हैं।

भारत का संविधान भारत के नागरिक को पूरे देश का नागरिक होने की और पूरे देश में उसके  कानूनी अधिकारों की गारंटी देता है लेकिन कोरोना संकट के दौर में जब देश के गरीबों पर मुसीबत आई और पहली बार देश प्रदेश की सरकारों को देश के कथित नेता और अधिकारियों को गरीब और कमजोर के लिए आगे बढ़कर कुछ करने का वक्त आया तो उन्होंने मुंह फेर लिया।

अपने खून पसीने से देश के विकास के पहियों को खींचने वाले कामगारों और मजदूरों को बाहरी और प्रवासी कहकर न सिर्फ अपमानित किया गया बल्कि उन्हें उनके गृह प्रदेशों को जाने के लिए मजबूर किया गया। कामगारों के मुद्दे पर क्षेत्रवाद की घटिया सियासत शुरू हो गई पहले योगी आदित्यनाथ उधव ठाकरे और राज ठाकरे ने बयानों की राजनीति की गरीबों की मदद करने की बजाय क्षेत्रवाद का नमक छिड़क कर उनके घाव को ताजा किया और उसके बाद देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के राजा अरविंद केजरीवाल ने तो हद ही कर दी।

खुद को आम आदमी का नेता बताने वाली अरविंद केजरीवाल ने देश के आम आदमी को संकट की इस घड़ी में अपमानित करके दिल्ली से बाहर का ही रास्ता दिखा दिया। देश के नागरिक का देश के हर कोने पर पूरा अधिकार है इस बात की गारंटी भारत का संविधान देता है लेकिन केजरीवाल ने यह कह दिया कि देश के गरीबों का अधिकार देश की राजधानी दिल्ली पर नहीं है और दिल्ली सरकार के अस्पताल अन्य प्रांतों के निवासियों का इलाज नहीं करेंगे।

संविधान की मंशा के खिलाफ इतनी गंभीर बात बोलते हुए केजरीवाल को शर्म नहीं आई और वह यह भी भूल गए कि दूसरे प्रदेशों से यदि कोई दिल्ली इलाज कराने के लिए आता भी है तो वह सिर्फ गरीब आदमी होता है कोरोनावायरस के इस कठिन दौर में लंबी यात्रा करके अपना गांव घर अपना जिला अपना प्रदेश छोड़कर जो दिल्ली जाएगा वह कोई निर्बल ही होगा जिसकी मदद करना किसी भी नेता का पहला धर्म होना चाहिए।

ज्यादातर प्रदेश सरकारें कोरोना मरीजों को निशुल्क इलाज हर जिले में मुहैया करा रही हैं ऐसे में दूसरे प्रदेश से कोई दिल्ली सिर्फ इलाज कराने के लिए क्यों जाएगा और यदि कोई गरीब मुसीबत का मारा दिल्ली पहुंच जाता है तो देश की राजधानी पर देश के सभी नागरिकों का अधिकार है लेकिन केजरीवाल ने गैर जिम्मेदाराना राजनीति करते हुए दिल्ली के स्थानीय मतदाताओं को नकारात्मक प्रलोभन देकर गोलबंद करने की कोशिश की और क्षेत्रवाद की घटिया सियासत को परवान चढ़ाते हुए अन्य प्रांतों के लोगों को बाहरी कहते हुए उन्हें राष्ट्रीय नागरिक अधिकारों से वंचित करने का प्रयास किया।

हालांकि केजरीवाल की कोशिश विफल हो गई और दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने केजरीवाल सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया और यह स्पष्ट कर दिया दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में देश के किसी भी हिस्से से कोई भी व्यक्ति अपना इलाज करा सकता है। राज्यपाल ने केजरीवाल के आदेश को निरस्त करके क्षेत्रवाद की घटिया सियासत पर कुछ देर के लिए रोक लगा दी है। लेकिन जो सियासत इस कठिन दौर में काफी नीचे जाकर नेताओं ने शुरू की है उसका बड़ा खामियाजा देश को आने वाले समय में भुगतना पड़ेगा।

जो देश पहले से ही सांप्रदायिकता और जातिवाद से जूझ रहा है उस देश में क्षेत्रवाद की घटिया राजनीति राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए बड़े खतरे पैदा करेगी।

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