बैंकिंग रेगुलेशन एमेंडमेंट बिल- 2020 नें अब कानून की शक्ल ले ली है। पिछले सप्ताह लोकसभा से पारित होने के बाद अब राज्यसभा में भी इसे से मंजूरी मिल गई है। इस बिल के कानून बन जाने के बाद देश के सहकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक के अधीन कर दिया जाएगा इससे सहकारी बैंकों में लोगों के जमा पैसे सुरक्षित हो जाएंगे। हालांकि पैसों को लेकर ग्राहकों को सुरक्षा पहले भी मिल रही थी लेकिन कई सहकारी बैंकों की वित्तीय हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी जिसे लेकर लोगों को अपने जमा पैसों को लेकर चिंता हो रही थी। सहकारी बैंकों की लगातार बिगड़ती वित्तीय सेहत और लेन-देन को लेकर लगातार आ रही शिकायतों के बाद सरकार ने बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट-1949 में संशोधन करने का फैसला किया। इससे पहले केंद्र सरकार ने सहकारी बैंकों को रिजर्व बैंक के तहत लाने के लिए जून में एक अध्यादेश जारी किया था जिसने अब कानून की शक्ल ले ली है।
●कानून बन जानें के बाद क्या होगा भारत में इस समय 1482 अर्बन और 58 बहु-सहकारी बैंक हैं जो अब आरबीआई के आधीन काम करेंगें। इस एक्ट के माध्यम से आरबीआई के पास यह ताकत होगी कि वह किसी भी बैंक के पुनर्गठन या विलय का फैसला ले सकता है। इसके लिए उसे बैंकिंग ट्रांजेक्शंस को मोराटोरियम में रखने की जरूरत भी नहीं होगी. इसके अलावा आरबीआई यदि बैंक पर मोराटोरियम लागू करते हैं तो फिर सहकारी बैंक कोई लोन जारी नहीं कर सकते और न ही जमा पूंजी का कोई निवेश कर सकते हैं।
जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बैंक किसी भी बहु-सहकारी बैंक के निदेशक बोर्ड को भंग कर सकता है और उसके काम-काज की कमान अपने हाथ में ले सकता है। इसके अलावा आरबीआई यदि चाहे तो इन बैंकों को इस नियम से अलग कुछ छूट नोटिफिकेशन जारी करके दे सकता है। यह छूट नौकरियों, बोर्ड निदेशकों की योग्यता के नियम और चेयरमैन की नियुक्ति जैसे मामलों में दी जा सकती है।
●बैंक के दिवालिया हो जानें की स्थिति में मिलेंगे 5 लाख रुपए बजट 2020 में बैंक के दिवालिया हो जानें की स्थिति में जमाकर्ताओं को अधिकतम 5 लाख रुपये मिलनें का जिक्र किया गया था जो पहले 1 लाख रुपए थी। जमाकर्ता के खाते में कितनी भी रकम हो उसे 5 लाख की बीमा सहायता दिए जानें का नियम है। आरबीआई की सब्सिडियरी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन के मुताबिक बीमा का मतलब है, जमा राशि कितनी भी हो ग्राहकों को 5 लाख रुपये ही मिलेंगे।
●बैंक डूबने पर डीआईसीजीसी करता है जमाकर्ताओं को भुगतान किसी बैंक के डूब जाने पर ग्राहकों के द्वारा जमा राशि को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक के अधीन एक निगम की स्थापना की है- जमा बीमा एवं ऋण प्रतिभूति निगम (डिपॉजिट इंसोरेन्स एन्ड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन यानि डीआईसीजीसी)।
डीआईसीजीसी एक्ट, 1961 की धारा 16 (1) के प्रावधानों के तहत, अगर कोई बैंक डूब जाता है या दिवालिया हो जाता है, तो कॉरपोरेशन हर जमाकर्ता को भुगतान करने के लिए जिम्मेदार होता है।
जमा राशि पर 5 लाख रुपये तक का बीमा होता है। यदि खाता एक ही बैंक की कई ब्रांच में है तो सभी खातों में जमा पैसे और ब्याज को जोड़ा जाएगा इसके बाद केवल 5 लाख तक की जमा को ही सुरक्षित माना जाएगा। अगर किसी बैंक में एक से अधिक अकाउंट और फिक्स डिपाजिट हैं तो भी बैंक के डिफॉल्ट होने या डूबने के बाद 5 लाख रुपये ही मिलने की गारंटी है।
●डूबे हुए बैंक से जमाकर्ता अपनी धनराशि का दावा का कैसे कर सकते हैं? डीआईसीजीसी जमाकर्ताओं से सीधे नहीं डील करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक अथवा रजिस्ट्रार को जब निर्देश किया जाता है कि किसी भी बैंक को निरस्त करना है तो वह एक औपचारिक निरसनकर्ता की नियुक्ति करता है जो बैंक को समेटने की प्रक्रिया को देखता है। डीआईसीजीसी अधिनियम के अनुसार, निरसनकर्ता डीआईसीजीसी को अपनी नियुक्ति के तीन महीने के भीतर एक सूची देता है जिसमें सभी बीमित जमाकर्ताओं और उनके बकाये का उल्लेख होता है। इसके बाद डीआईसीजीसी का यह काम है कि वह इस सूची को पाने के दो महीने भीतर सभी बकायों का भुगतान कर दे।
रिपोर्ट – आराधन शुक्ला