वीआईपी फिजूलखर्ची में कटौती के बजाय जनता पर महंगे पेट्रोलियम का बोझ क्यों डाल रही सरकार?
पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमत एक बार फिर देश में सामाजिक चर्चा और राजनीति का मुद्दा बन गई हैं एक तरफ रसोई गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं तो दूसरी तरफ पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भी पिछले कुछ महीनों में लगातार वृद्धि हुई है जिसके चलते सभी वस्तुओं की महंगाई में वृद्धि हो रही है क्योंकि पेट्रोल-डीजल से ही आवश्यक वस्तुओं के ट्रांसपोर्टेशन का अधिकांश कार्य होता है ।
विपक्ष इस मुद्दे पर हमलावर है वही आम जनता भी बेहाल है क्योंकि बड़ी उम्मीदों से उन्होंने मोदी नरेंद्र मोदी को राष्ट्र नायक समझा था लेकिन जनहित के सामान्य विषयों पर अब बीजेपी के समर्थक भी दुखी हैं । एक तरफ साधारण परिवारों का बजट बिगड़ता जा रहा है दूसरी तरफ सरकारी देनदारी बढ़ती जा रही है पड़ोसी देशों में भारत से पेट्रोल ज्यादा सस्ता क्यों हैं ?
भारत से ही नेपाल में पेट्रोल जाता है फिर भी वहां बहुत सस्ता है और वहां से लोग पेट्रोल-डीजल लेकर भारत में चोरी-छिपे आ रहे हैं यह सारे विषय सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं ,जिनका जवाब भाजपा के नेता नहीं दे पा रहे हैं ।
कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार देश की मजबूती पर बहुत पैसा खर्च कर रही है इसलिए सरकारी खजाने को मजबूत करना जरूरी है सरकार को देश को आगे बढ़ाने के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत है इसलिए टैक्स लगाए जा रहे हैं और शायद इसीलिए पेट्रोलियम पदार्थ भारत में महंगे हैं ।
ऐसे में एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब सरकार को देना चाहिए। भारत में सरकारी अधिकारियों नेता और जनप्रतिनिधियों की सुख-सुविधाओं पर हजारों करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं अधिकारियों नेताओं के फाइव स्टार बंगलो दफ्तरों उनकी सेवा में लगी कई कई लग्जरी गाड़ियों नौकर चाकर आदि का खर्च भी आम जनता से वसूला जा रहा है । जो देश अभी भी विकासशील है जहां अभी भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं वहां जनता की सेवा के लिए काम करने वाले लोग सेवक जनता के खून पसीने की कमाई से राजा महाराजा जैसा जीवन जी रहे हैं ।
भारत में विधायकों सांसदों मंत्रियों और अधिकारियों के वेतन भत्तों के अलावा उनकी सुरक्षा उनकी गाड़ियों आवासीय और कार्यालय की शाह खर्ची हजारों करोड़ों में है ऐसे में जनता के हितों के लिए समर्पित रहने का दावा करने वाली केंद्र सरकार को जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ाने और महंगाई की कड़वी दवा पिलाने की बजाए अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए नाजायज सरकारी खर्चों में कटौती का कठोर कदम उठाना चाहिए।
महंगे प्राइवेट भवनों में चल रहे सरकारी दफ्तरों को तमाम सरकारी भवनों में समायोजित करना चाहिए। प्राइवेट होटलों में होने वाली मीटिंग पर रोक लगा कर सरकारी सभागार में ही मीटिंग लेनी चाहिए सरकारी खर्च पर होने वाले महंगे चाय नाश्ते महंगी मिनरल वाटर की बोतलों की बजाय सादगी पर आना चाहिए।
नेताओं और अफसरों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह लोकसेवक हैं और जनता के हाथ से रोटी छीन कर जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा निकलवा कर वह मौज लेना बंद करें तो देश का काफी भला होगा और यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे उन नेताओं को समझना चाहिए जिन्हें लोगों ने बड़े अरमानों से बड़े पदों पर पहुंचाया।
दीपक मिश्रा प्रधान संवाददाता