लगातार हो रही मजदूरों की मौत का जिम्मेदार कौन? क्या केंद्र और राज्य सरकारों की आपदा प्रबंधन व्यवस्था फेल हो चुकी है?

रिपोर्ट – दीपक मिश्रा

उत्तर प्रदेश के औरैया में  आज बिहार झारखंड और बंगाल के 24 मजदूर  दर्दनाक सड़क दुर्घटना में मौत के शिकार हो गए, दो दर्जन गंभीर हालत में अस्पताल में है। इसके पहले औरंगाबाद में रेलवे लाइन पर  डेढ़ दर्जन मजदूर ट्रेन से कटकर अपनी जान गवा बैठे, पश्चिमी यूपी में भी आधा दर्जन मजदूरों की मौत हुई थी  बाराबंकी में भी कई मजदूर सड़क दुर्घटना का शिकार हो चुके हैंl
इसके पहले महाराष्ट्र समेत देश के तमाम राज्यों से ऐसी खबरें आई जब लोगों का दिल भर आया और मजदूरों का खून  देश की सड़कों को लाल कर गया।

दरअसल औद्योगिक प्रदेश कहे जाने वाले महाराष्ट्र  हरियाणा गुजरात राजस्थान और दिल्ली की सरकारों ने संवेदनहीनता के साथ लाखों गरीब मजदूरों को पैदल और असुरक्षित यात्राओं पर निकल जाने दिया। वहां उन्हें समुचित भोजन और आश्रय दिया गया होता तो वह  अपने प्रदेशों अपने गांव के लिए  जान जोखिम में डालकर ना निकल पड़ते।

केंद्र सरकार भी राज्यों के साथ बेहतर तालमेल बनाकर  सही निर्देश जारी करने में और लागू करवाने में विफल रही।
इतना ही नहीं लगभग सभी राज्य सरकारें और जनपदों के कलेक्टरों की अगुवाई में काम करने वाला प्रशासनिक तंत्र समुचित व्यवस्था करने में विफल  दिख रहा हैं।

दरअसल ,जब से देश में लॉक डाउन लागू किया गया है तब से आज तक ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि देश की सरकारें भ्रमित हैं और अभी तक देश के साधारण लोगों खास तौर पर गरीब और मजदूरों के लिए कोई भी स्पष्ट नीति नहीं निर्धारित कर पाई हैं

केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की दूरदर्शिता का अभाव और खोखला आपदा प्रबंधन, लाखों मजदूरों और करोड़ों गरीबों के लिए जीवन का सबसे कठिन समय ले आया है, जोकि भयंकर शारीरिक और मानसिक तकलीफों का सामना कर रहे हैं और बड़ी संख्या में  अपनी जान भी गंवा रहे हैं।

मार्च के तीसरे सप्ताह में जब देश में संक्रमण कम था तब लोगों को उनके घरों पर ही रुकने के निर्देश दे दिए गए मजदूरों को उनके ठिकाने पर ही रुकने के लिए बाध्य कर दिया गया ,डेढ़ महीने बीतने के बाद जब मजदूरों को न पैसा उपलब्ध हो पा रहा है ना भोजन उपलब्ध हो पा रहा है और संक्रमण भी कई गुना तेजी से बढ़ता जा रहा है तो बेबस होकर उन्होंने अपने घरों को जाने का फैसला किया, देशभर में प्रवासी मजदूरों की संख्या को देखते हुए सरकारी इंतजाम ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर साबित हो रहे हैं।

केंद्र और राज्य सरकारों ने जो ट्रेन और बसे चलवाई उनकी संख्या मजदूरों की बड़ी संख्या के मुकाबले बहुत कम है,  इसीलिए 60 से 70 प्रतिशत मजदूर सड़क मार्ग से अपने घरों की ओर पहुंचना चाहते हैं , क्योंकि उन्हें भरोसा है कि वहां कम से कम वह अपने लिए और अपने बीवी बच्चों के लिए भोजन का तो इंतजाम कर लेंगे क्योंकि दूसरे  प्रदेशों में तो उन्हें अब भोजन का भी संकट पैदा हो गया है

कोरोनावायरस संकट में राज्य और केंद्र सरकारों के बीच जबर्दस्त तालमेल का अभाव साफ दिख रहा है इतना ही नहीं देश के अलग-अलग राज्यों के बीच भी संवाद हीनता और सामंजस्य की कमी खुलकर सामने आई है और इसका शिकार गरीब और मजदूर हो रहे हैं।

बड़ी संख्या में लोग महाराष्ट्र से मोटरसाइकिलओं ट्रक और तिपहिया वाहनों पर असुरक्षित यात्राएं कर रहे हैं बहुत से लोग तो पैदल ही अपने बीवी बच्चों के साथ लंबी यात्राओं पर निकले हैं।

ऐसा लग रहा है कि इस आपदा से निपटने की ठोस योजना के अभाव में, सरकारी तंत्र तरह विफल हो रहा है, जिलों के कलेक्टर से लेकर राज्य सरकार और केंद्र की सरकार, गरीबों और मजदूरों को उचित सहायता और भरोसा देने में विफल हो रही है इसीलिए लाखों लोग खून और पसीना बहाते हुए अपने गांव की मिट्टी की शरण में जा रहे हैं।

यह समय की जरूरत है और देश के करोड़ों पीड़ितों की सरकार से मांग है कि केंद्र और राज्य की सरकारी आपस में बेहतर तालमेल विकसित करके लोगों को राहत पहुंचाने का काम करें और जिला स्तर पर सभी व्यवस्थाओं की निगरानी का तंत्र भी विकसित किया जाए क्योंकि जो निर्देश केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा दिए जा रहे हैं उनका धरातल पर कितना पालन हो रहा है यह भी देखना जरूरी है।

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