सारा जीवन परिवार और समाज को समर्पित करने के बाद रिटायरमेंट के समय हर वरिष्ठ नागरिक की दरकार होती है की वह बची हुई जिंदगी सुखी, स्वस्थ , चिंतामुक्त व सम्मानपूर्वक तरीके से गुज़ार सके। कोई भी अपने परिवार जनों पर बोझ नहीं बनना चाहता है ।
बढ़ती उम्र के साथ सबसे अधिक भय होता है बीमारियों और उन पर होने वाले खर्चों का। यदि आप किसी ऐसी बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं जिसके कारण आप को लंबे समय तक बिस्तर पर रहना होता है तो वित्तीय और शारीरिक दोनों प्रकार से खुद अपने लिए और परिवारजनों के लिए कष्टकर होता है। उस उम्र में दिल पर यह बोझ की आप वित्तीय और शारीरिक रूप से अपने परिजनों पर निर्भर हैं आप को और अधिक बीमार बना देता है।
इस तकलीफ को कम करने के लिए बहुत ज़रूरी है कि वरिष्ठ जनों के लिए ऐसी , किफ़ायती स्वस्थ बीमा पालिसियाँ लायी जाएँ जो अन्य बीमारियों के साथ साथ घर में रह कर ( Day Care ) देखभाल के व्यय की भी प्रतिपूर्ति करती हों ताकि कम से कम वरिष्ठजनों और उनके परिजनों के बीमारियों पर होने वाले वित्तीय बोझ को कम किया जा सके।
ऐसा नहीं है कि वरिष्ठ जनों के लिए स्वास्थ बीमा उत्पादों की बाज़ार में कोई कमी हो। एक से एक बढ़िया उत्पाद मौजूद हैं पर प्रश्न उठता है की वित्तीय रूप से कितने लोग इन उत्पादों को लेने के लिए सक्षम हैं , और बारीक और मोटे अक्षरों के पीछे क्या शर्तें छुपी हुई हैं ? इन छुपी हुई शर्तों का ज्ञान आपको तभी होता है जब आप द्वारा दावा करने की नौबत आती है।
अगर मोटे तौर पर देखा जाये तो यह समस्या सबसे अधिक मध्य आय वर्ग के वरिष्ठ जनों के साथ आती है। उच्च आय वर्ग के वरिष्ठ जनों के लिए पॉलिसी के प्रीमियम का भुगतान करना कोई समस्या है ही नहीं और अल्प आय वाले केंद्रीय सरकार की आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत आच्छदित हैं।
अगर देखा जाय तो मध्य वर्ग के वरिष्ठ जनों के प्रति बीमा कंपनियों का रुख संवेदनशील भी नहीं है।
इसको समझने के लिए हमें एक उदाहरण लेना पड़ेगा | मेरे एक मित्र हैं जो पूर्व वर्ती ओरिएंटल बॅंक ऑफ कॉमर्स बैंक के खातेधारक हैं। बैंक स्टाफ के कहने पर वर्ष 2016 में उन्होने अपने परिवार के लिए 5 लाख रुपए की एक फैमिली फ्लोटर स्वास्थ बीमा पॉलिसी ले ली। यह पॉलिसी सरकारी क्षेत्र की बीमा कंपनी ओरिएंटल इन्शुरन्स कंपनी लिमिटेड की सहभागिता में जारी की गई थी। उस समय इस पॉलिसी का प्रीमियम लगभग साढ़े सात हज़ार रुपए प्रतिवर्ष था जो धीरे धीरे बढ़ कर दस हज़ार रुपए हो गया। मेरे यह मित्र अब 61 साल के हो गए हैं। अभी जब गत माह इस पॉलिसी के नवीनीकरण के लिए वह बैंक गए तो उन्हें बताया गया की प्रीमियम की धनराशि बढ़ कर दुगनी हो गई है और उन्हें गत वर्ष की प्रीमियम धनराशि रुपए 10742/- की जगह रुपए 20567/- का भुगतान करना होगा। एक अजीब असमंजस की स्थिति थी गत वर्ष रिटायरमेंट से पहले उनकी मासिक आय सवा लाख के करीब थी जो अब पेंशन के रूप में घट कर 40 हज़ार मासिक मात्र रह गई थी। गणित के हिसाब से उनकी मासिक आय पहले की तुलना में घट कर मात्र 32% रह गई थी जबकि उनकी बीमा पॉलिसी का प्रीमियम 100% से अधिक बढ़ गया था | बीमा कंपनी के पास ऐसा कौन सा डाटा बेस है जो यह बताता है की 61 की उम्र पार करते ही वरिष्ठ जनों में बीमार पड़ने की संभावना 100 गुना बढ़ जाती है ? क्या यह बढ़ोतरी किसी भी दृष्टि से न्याय संगत है ?
वरिष्ठ जनों को एक उचित माहौल प्रदान करने के लिए बहुत ज़रूरी है की कुछ बातों पर तुरंत ध्यान दिया जाय –
- IRDAI को चाहिए की वह इस दिशा में उचित कदम उठाए। हर बीमा कम्पनी जो स्वास्थ बीमा क्षेत्र में कार्य कर रही है उसके लिए बाध्यकारी होना चाहिए की वह वरिष्ठ जनों के लिए एक किफ़ायती पॉलिसी बाज़ार में लाये। इस तरह की पॉलिसियों के तहत दी जाने वाली सुविधाओं और उनके मूल्य पर बीमा नियंत्रक की सतत निगाह होनी चाहिए ।
- सरकार वरिष्ठजनों के हितों की रक्षा के लिए एक अलग प्राधिकण गठित करे जो वरिष्ठ जनों की समस्याओं और कल्याण के लिए कार्य करे। शुरुआत में बड़े शहरों में समाज सेवी संस्थाओं के माध्यम से वरिष्ठ जन सामुदायिक केन्द्रों की स्थापना की जाय जहां वह अपनी उम्र के लोगों के बीच मनचाही गतिविधियों में अपना समय बिता सकें।
- सरकार वरिष्ठ जनों की स्वास्थ बीमा पॉलिसियों पर जी एस टी और स्टैम्प शुल्क पूर्णतया समाप्त कर दे और बीमा कंपनियों को इन पॉलिसियों के प्रीमियम संग्रहण और दावों पर उनकी आय की गढ़ना करते समय समुचित छूट दे ताकि बीमा कम्पनियां इस क्षेत्र में काम करने के लिए प्रेरित हों।
वरिष्ठ जन अपने जीवन का अंतिम समय सम्मानपूर्वक और खुशी खुशी जी सकें इसमें सबसे अहम भूमिका उनके परिवारजनों की होती है। एकाकीपन और अनदेखा किए जाने का एहसास बढ़ती उम्र की सबसे बड़ी बीमारी है। थोड़ा समय देकर , थोड़े संयम से काम लेकर और उनको यह एहसास करा कर कि उनकी मौजूदगी हमारे जीवन नें अब भी उतना ही महत्व रखती है, हम उनके जीवन की संध्या में रंग भर सकते हैं।
सेवानिवृत वरिष्ठ जन ट्यूबलाइट भले ही हों पर फ्यूज बल्ब कदापि नहीं है। भले ही ट्यूबलाइट की तरह आपकी बात समझने में उन्हें देर लगती हो पर जब ट्यूबलाइट एक बार जल जाती है तो पूरा घर रोशनी से भर जाता है।
आलेख – विकास चन्द्र अग्रवाल