वाराणसी। धर्म और अध्यात्म की नगरी वाराणसी में हर त्यौहार अपने आप में खास होता है. इस नगरी के विषय में शास्त्रों में कहा गया है कि बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर टिकी है काशी. बात जब स्वयं बाबा विश्वनाथ के लगन की जाए तो वह पल ही अपने आप में अद्भुत हो जाता है. 16 फरवरी को बाबा विश्वनाथ का तिलकोत्सव होगा.
बाबा विश्वनाथ का तिलक चढ़ाने पहुना आएंगे और उनका लगन लगाएंगे। हर हर महादेव के जयघोष के बीच बाबा की रजत पंचबदन प्रतिमा को पूजन-अभिषेक के लिए रजत सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया जाएगा। तिलकोत्सव के लिए बाबा को दूल्हे के परिधान धारण कराए जाएंगे। बाबा को खादी के परिधान धारण कराए जाएंगे।
बसंत पंचमी पर बाबा विश्वनाथ का परंपरानुसार तिलक चढ़ाया जाएगा। इस बार यह आयोजन टेढ़ीनीम स्थित विश्वनाथ मंदिर के महंत डा. कुलपति तिवारी के आवास पर होगा।
357 सालों से चल रहा है बाबा का रश्मों रिवाज
महंत डा. कुलपति तिवारी ने कहा कि महादेव के तिलक की कथा राजा दक्ष प्रजापति से जुड़ी है। शिवमहापुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण और स्कंदपुराण में अलग-अलग कथा संदर्भों में महादेव के तिलकोत्सव का प्रसंग वर्णित है। दक्ष प्रजापति उस समय के कई मित्र राजा-महाराजाओं के साथ कैलाश पर जाकर भगवान शिव का तिलक किया था। उसी आधार पर लोक में इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है। काशी में इस वर्ष इस परंपरा के निर्वहन का 357वां वर्ष है। तिलकोत्सव की परंपरा के सापेक्ष हाल के सौ वर्षों में ऐसी धूमधाम दूसरी बार दिखेगी। गत वर्ष पहली बार बाबा के तिलकोत्सव में बड़ी संख्या में काशीवासी सम्मिलित हुए थे। गवना उत्सव की भांति तिलकोत्सव में भी काशीवासी सीधे-सीधे शरीक होंगे। शहनाई की मंगल ध्वनि और डमरुओं के निनाद के बीच तिलकोत्सव की बधाई यात्रा निकाली जाएगी।
रिपोर्ट – पुरुषोत्तम सिंह