विडंबना: कांग्रेस के सामने भाजपा से ज्यादा आक्रमक टीवी एंकर अर्नब खड़े दिखाई देने लगे!

रिपोर्ट – दीपक मिश्रा

देश में जो सियासी लड़ाई कांग्रेस बनाम भाजपा के रूप में चल रही थी वह लड़ाई अब अर्नब गोस्वामी, बनाम कॉन्ग्रेस के रूप में दिखाई पड़ रही है। पहले कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई में भाजपा आगे होती थी अर्नब गोस्वामी पीछे होते थे और अब आगे अर्नब है भाजपा उनके पीछे खड़ी है।

कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता जहां लगातार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं वहीं भाजपा के प्रवक्ता और नेता लगातार ट्वीट पर ट्वीट करके अर्नब गोस्वामी की बातों का समर्थन कर रहे हैं।

मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वालों को यह भी समझना होगा कि देश की मीडिया आज जहां दिखाई पड़ रही है वहां उसे पहुंचाने में देश के बड़े राजनीतिक दलों की ही बड़ी भूमिका है।

ऐसे हालात इसलिए बन रहे हैं क्योंकि राजनीतिक दलों और मीडिया घरानों की मिलीभगत से बहुत से चर्चित पत्रकार राजनैतिक पक्षकार बनते जा रहे हैं।

महाराष्ट्र में संतों की हत्या को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ सवाल पूछने और टिप्पणी करने के आरोप में रिपब्लिक भारत चैनल के संपादक अर्नब गोस्वामी के खिलाफ कांग्रेस के लोगों ने सैकड़ों मुकदमे दर्ज कराए हैं ज्यादातर मुकदमे उन राज्यों में दर्ज हुए हैं जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में है।

कांग्रेस के बड़े नेताओं का मानना है कि उनकी नाराज़गी सोनिया गांधी के खिलाफ सवाल पूछने को लेकर नहीं है नाराजगी इस बात को लेकर है कि सवाल पूछने के साथ-साथ अर्नब गोस्वामी के द्वारा यह गंभीर आरोप भी लगाया गया कि, संतों की हत्या से सोनिया गांधी को खुशी हुई होगी और उन्होंने इटली में यह बताया होगा कि उन्होंने अपने शासित राज्य में संतों की हत्या करवा दी।

दरअसल, अपने चैनल में एक शो के दौरान अर्नब गोस्वामी ने यह सवाल खड़ा किया कि कांग्रेस पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने आखिर क्यों पालघर में हिंदू संतों की हत्या पर शोक नहीं जताया , इस घटना की निंदा नहीं की , इस घटना की मीडिया में कोई चर्चा नहीं कीl उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर सवाल उठाते हुए कहा कि सोनिया गांधी ने हिंदू संतों की हत्या पर खामोशी क्यों ओढ़ रखी है वह इस मुद्दे पर कोई गंभीर टिप्पणी क्यों नहीं करती।

उन्होंने सवाल किया कि यदि ऐसी घटना मुस्लिम मौलवी या फिर क्रिश्चियन पादरी के साथ होती तो क्या फिर भी कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी खामोश रहती। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस के समर्थन से सरकार चल रहे हैं और वहां पुलिस की मौजूदगी में सरेआम संतों की हत्या हुई है।

सवाल यहां तक रहता तो शायद लोग हजम कर लेते, क्योंकि इस तरह के सवाल मीडिया में पहले भी पूछे गए हैं। अलग-अलग दल और विचारधाराओं के नेता अपनी राजनैतिक सुविधा के हिसाब से घटनाओं पर टिप्पणी देते हैं भारत में यह कोई नई बात नहीं है। लोग जानते हैं कि भारत में हिंदू मुसलमान की सियासत में ज्यादातर राजनीतिक दलों ने अपने वोट बैंक को निश्चित कर लिया है। कुछ दल मान चुके हैं कि वह प्रो मुस्लिम राजनीति करते हैं इसलिए वह मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली घटनाओं पर जोरदार प्रतिक्रिया देते हैं धरना प्रदर्शन करते हैं और कड़ी कार्रवाई की मांग करते हैं, जबकि हिंदुओं के साथ होने वाली घटनाओं पर मौन धारण कर लेते हैं, वहीं कुछ दल मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली घटनाओं पर मौन धारण कर लेते हैं और हिंदुओं के साथ होने वाली घटनाओं पर जोरदार प्रतिक्रिया देते हैं।

पिछले कई दशकों में भारत के ज्यादातर बड़े नेता और उनके दल सांप्रदायिक विभाजन का पोषण कर रहे हैं और इससे सियासी फायदा भी हासिल करते हैं।
इन्हीं राजनीतिक दलों का प्रभाव मीडिया और पत्रकारिता करने वाले लोगों पर भी साफ देखा जा सकता है।

ज्यादातर मीडिया घरानों और ज्यादातर पत्रकारों की राजनीतिक पसंद ना पसंद उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता और उनका वैचारिक विभाजन उनकी खबर और उनके लेखों में साफ दिखाई पड़ता है।

देश की जनता को निष्पक्षता का उपदेश देने वाले अधिकांश राजनीतिक दलों के नेता और मीडिया घरानों के मालिक और संपादक ही देश को हिंदू मुस्लिम सियासत की ओर धकेलने के लिए जिम्मेदार कहे जा सकते हैं। बेलगाम सोशल मीडिया अभी नफरत की आग को भड़का रहा है।

आज देश के चर्चित पत्रकार राष्ट्रहित और निष्पक्षता के पैमानों पर कम और अपनी दोस्ती और होने वाले फायदों के प्रति वफादारी जताने के चक्कर में राजनीतिक दलों के नीतियों और विचारधाराओं के प्रति ज्यादा प्रतिबद्ध दिखाई पड़ते हैं और उसी के समर्थन में खबरें और टीवी कार्यक्रम भी बनाते हैंl अर्नब गोस्वामी इस श्रेणी में अकेले नहीं है रवीश कुमार पर भी ऐसे आरोप लगे हैं लेकिन भाषा पर उनका नियंत्रण बेहतर है।

भाजपा के प्रति अर्नब गोस्वामी की नजदीकी और कांग्रेस के प्रति विरोध उनकी खबर में उस समय और स्पष्ट हो गया जब सवाल पूछते पूछते हैं उन्होंने सोनिया गांधी पर संतों की हत्या के समर्थन का गंभीर आरोप भी लगा दिया।

सोनिया गांधी के खिलाफ अर्नब गोस्वामी की विवादित टिप्पणी उनके और उनके परिवार पर कथित हमला और एक ही दिन में सैकड़ों मुकदमे दर्ज होना ,
यह सब कुछ ना सिर्फ देश की मीडिया बल्कि देश की राजनीति के लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है।
पहले मीडिया और राजनीति को देश सेवा का मिशन कहा जाता था अब लोग इसे भी मुनाफे का धंधा कहने लगे हैं।

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