विदेश नीति में अब व्यापार कूटनीति का हथियार, मलेशिया तो सुधरा लेकिन नेपाल पर ध्यान देने की जरूरत !

आराधना शुक्ला-

बीते कुछ समय से एशिया की राजनीति में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिला है। भारत एवं उसके पड़ोसी देशों से रिश्ते व्यापारिक नजरिए से तय होने लगे हैं। मलेशिया के पाल्म ऑयल को भारत ने खरीदने से मना कर दिया तो अब पाकिस्तान नया खरीददार बनाकर सामने आया है। क्या ये नए दशक की नई विदेश नीति तय करने की तरफ का बढ़ता हुआ कदम है?

पिछले कुछ वर्षों में दुनिया की राजनीति एक नए ढंग से चल पड़ी है। न सिर्फ एशिया बल्कि पूरे यूरोप समेत पश्चिम के कई देशों ने इस परिवर्तन को महसूस किया है।जहां एक तरफ वैश्वीकरण का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका ने खुद को कई बड़े संगठनों से सिर्फ इसलिए अलग कर लिया क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा उन पर खर्च हो रहा था। इसके अलावा व्यापारिक मुद्दों पर भी वह कई बार मुखर रहा है।अमेरिका का मानना है, कि सिर्फ वही क्यों जिम्मेदारी निभाए?

आज ऐसे कई देश है जिनके अर्थव्यवस्था का आकार इतना बड़ा है कि वह आसानी से उन सभी संगठनों को अपना हिस्सा दे सकते हैं, जो गरीब देशों की सहायता के लिए बने हैं। यह तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र है।एशिया के दो बड़े देश चीन और भारत, इनकी जिम्मेदारी बनती है कि अपने पड़ोसी देशों की सहायता करें। भारत पड़ोसियों को लेकर हमेशा उतार रहा है लेकिन बेलगाम बढ़ती जनसंख्या जातिवाद और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं की वजह से भारत की विकास गति अपेक्षा से कम बनी हुई है इस वजह से भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में पड़ोसी देशों के प्रति उतना मददगार नहीं हो पा रहा।
जब से भारत में नई सरकार सत्ता में आई है उसका मुख्य मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा ही बना हुआ है। इसी को आधार बनाकर वह लगातार दूसरी बार सत्ता में काबिज हुई है।

अब सवाल उठता है कि  भारत एक जिम्मेदार देश रहा है और इस समय जो भी चल रहा है वह अपनी जगह सही हो सकता है, किंतु पड़ोसी देशों को नाखुश करने की शर्त पर कहीं से भी उचित नहीं है।
2019 में भारत सरकार ने ऐसे कई बड़े फैसले लिए जो सियासी मुद्दा बने और इन मसलों पर कई राजनीतिक दलों ने और कई संगठनों ने मुसलमानों को सरकार के विरुद्ध लामबंद करने का प्रयास किया  जिसकी परिणति शाहीन बाग और देश के कई इलाकों में  चल रहे मुस्लिम महिलाओं के प्रदर्शन के रूप में दिखाई पड़ रही है।

यह तो आंतरिक मसला हो जाता है इसमें किसी भी देश को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। फिर भी मलेशिया और पाकिस्तान जैसे देशों ने भारत के इस फैसले को कई बड़े मंचों से चुनौती दी है। अब क्योंकि भारत में समय राष्ट्रवादी सरकार सत्ता में है तो इस तरह के फैसलों की उम्मीद तो की ही जा रही थी, कि मलेशिया और भारत के बीच मुनाफे वाले व्यापार में कटौती की जाती। भारत पाल्म ऑयल का सबसे बड़ा आयातक देश था। उसने मलेशिया की जगह इंडोनेशिया को चुना इस तेल के आयात करने के लिए। यह चिंता का विषय था,मलेशिया के लिए। और तभी पाकिस्तान ने मलेशिया की धरती से तेल खरीदने की घोषणा कर दी।

गौर करने वाली बात है कि भारत जितना तेल खरीदा था, उतना पाकिस्तान खरीद पाएगा? यह सवाल उठना लाजमी भी है क्योंकि एक तो पाकिस्तान की जनसंख्या इतनी अधिक नहीं है कि इतने तेल की खपत कर पाए। अब देखना होगा कि पाकिस्तान के लिए आगे की राह क्या होगी। यहाँ एक सवाल और भी उठता है कि क्या यह सब सिर्फ इसलिए हो रहा है कि मलेशिया ने हर उस विचारधारा का समर्थन किया जो पाकिस्तान चाहता था। जाकिर नायिक के सवाल  पर भी मलेशिया  चुप्पी साध जाता है। भारत को एशिया में अपना वर्चस्व कायम करना है तो पड़ोसियों के साथ अपने संबंध मधुर बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा, न कि व्यापारिक प्रतिबंधों और वस्तुओं के आयात-निर्यात से प्रभावित होकर कोई भी ऐसा निर्णय लेकर जिससे पड़ोसियों के मन में खटास पैदा हो। नेपाल में जब नया संविधान बना था तो वहाँ भारत विरोधी प्रदर्शन सिर्फ इसलिए हो रहे थे कि भारत ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई थी।तब उस समय का फायदा चीन ने उठा लिया था।और इस बार बाजी पाकिस्तान मार रहा है।भारत को अब ज्यादा चौकन्ना रहने की जरुरत है। पाल्म ऑयल का मसला जो भी हो पर इससे एक बात तो साफ़ हो जाती है कि अब विदेशी मामले व्यापारिक मामलों से तय होनें लगें हैं।

अभी तक कमोबेश भारत की विदेश नीति नरेंद्र मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि के साथ ऊंचाई की ओर बढ़ रही है दुनिया के ज्यादातर देश भारत का सम्मान कर रहे हैं और भारत के हर मसले पर दुनिया के अधिकांश देशों का समर्थन मिल रहा है लेकिन या और बेहतर होता कि पड़ोस के सभी देशों से भी हमारे मधुर संबंध बने रहते ,हालांकि इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता।

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