वे निकले सयाने!! बुजुर्ग आडवाणी का टिकट काट कर ही माने बुढ़ापे की आड़ में कई वरिष्ठ नेताओ को किनारे लगाना जारी। गोविंदाचार्य, शिवपाल यादव जैसे नेताओं के दर्द हुए हरे पड़े द इंडियन ओपिनियन पर कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया का लेख


?‍? आह बुढ़ापा जीवन में जब आता है तो व्यक्ति को बहुत कुछ बर्दाश्त करना होता है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई जी के सखा भाजपा के लौहपुरूष वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को उनके भाजपाई चेलो ने बेटिकट कर दिया। बुढ़ापे की आड़ में हो रहे सियासी शिकार के निशाने पर अभी कई अन्य बुजुर्ग नेता भी हैं! इसके चलते दूसरे दलों के बुजुर्ग नेताओं के माथे पर भी बल नजर आ रहे हैं। जबकि बेचारे गोविंदाचार्य एवं शिवपाल यादव जैसे कई नेताओं का दर्द एक बार फिर हरा हो गया है ।फिलहाल आडवाणी जी सब्र करिए!! इसके बाद जोशी जी जैसे अन्य कई बुजुर्ग नेताओं का भी नंबर लगा हुआ है?

अटल सत्य है कि समय से ज्यादा बलवान दुनिया में कोई नहीं है। देश की राजनीति में एक ऐसी स्थिति नजर आ रही है जिसमें कई दलों के वरिष्ठ नेताओं को किनारे लगाने की मुहिम जारी है। कई दलों में समर्थन एवं प्रभाव के चलते कई वरिष्ठ बुजुर्ग नेताओं को किनारे किया गया। तो वहीं दूसरी ओर भाजपा जैसी पार्टी में बुढ़ापे की तलवार से बुजुर्ग नेताओं की सियासत की जड़ों को काटा जा रहा है! जिसका ताजा उदाहरण है देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी?? जी हां यह वही आडवाणी जी हैं जिनके इशारे पर भाजपा में टिकट दिया जाया करते थे। आज उसी भाजपा में ही बेटिकट कर दिए गए हैं। सत्य है कि आडवाणी जी अब 90 वर्ष के हो चुके हैं। दूसरे नेताओं को मौका मिलना चाहिए। लेकिन उससे ज्यादा एक सच यह भी है की लालकृष्ण आडवाणी को उनके ही चेलों ने बेटिकट रूपी गुरु दक्षिणा दी है? सियासी कूट के चलते सुनियोजित ढंग से
गुजरात के गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ेंगे! जहां से अब तक कई बार लालकृष्ण आडवाणी जी सांसद होते रहे हैं ।
चर्चाओं के मुताबिक प्रत्यक्ष यह दिख भी रहा है कि जब से केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदय हुआ उसके बाद से आडवाणी का सूरज धीरे-धीरे ढलता ही गया! यह वही नरेंद्र मोदी जी हैं जो आडवाणी जी की रथयात्रा के सारथी हुआ करते थे। यह वही मोदी जी हैं जिन पर जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई जी कुपित हुए थे तो आडवाणी जी ने ढाल बन कर के उन्हें बचाया था ?यह वही बेटिकट आज के आडवाणी है जिनके पीछे आज उनका टिकट काटने वाले गर्व के साथ चला करते थे! खैर भाजपा का यह निर्णय बहुत ही अच्छा है कि उम्र दराज नेताओं को नए नेताओं के लिए स्थान खाली करना चाहिए ?देश के सभी दलों को इस मामले में भाजपा का अनुसरण भी करना चाहिए ,क्योंकि जब अन्य क्षेत्रों में रिटायरमेंट की व्यवस्था है तो सियासत के क्षेत्र में भी यह जरूरी है। ताकि नए एवं ऊर्जावान लोग देश को आगे बढ़ाने के लिए सामने आ सके। लेकिन इस मुहिम को मजबूती देने के लिए संस्कारित माहौल की जरूरत जरूर है।
भाजपा को 2 सीटों से 2 सैकड़ा सीटों के लगभग पहली बार पहुंचाने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उनको भाजपा में ही ऐसे दिन देखने पड़ेंगे ।वैसे तो श्री आडवाणी की अनदेखी बीते सात आठ वर्षों से जारी है ।इसके गवाह कई वायरल वीडियो भी हैं ।कभी आडवाणी को चुनाव प्रचार से दूर रखने की कोशिश की गई ,कभी उनको टिकट बांटने वाली टीम से अलग रखने का प्रयास किया गया तो कभी ऐसा भी प्रयास हुआ बताया गया जिसके चलते वह राष्ट्रपति बनते बनते रह गए ?आखिर केंद्र में काबिज नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की टीम को आडवाणी से भय क्या था ?यह बात समझ के परे थी। खैर अब तो आडवाणी चुनाव लड़ने से भी रह गए ।

सनद हो कि आडवाणी का काम लोकसभा चुनाव के मुहाने पर लगाया गया। इससे पहले उनके खास यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा,संघ प्रिय गौतम ,पूर्व उत्तर प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई सहित कई अन्य उनकी टीम के नेताओं को पहले ही किनारे लगाया जा चुका था। अब भाजपा के बुजुर्ग चौकीदार को ड्यूटी से हटा दिया गया।
भाजपा को सींचने एवं कामयाबी के मुकाम तक पहुंचाने वाले आडवाणी जी का हश्र देख कर के बेचारे शिवपाल यादव एवं गोविंदाचार्य जैसे कई नेताओं का दर्द आज हरा हो चुका है? भाजपा के वर्तमान कर्णधारो ने आडवाणी को बेटिकट किया तो अभी आगे पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ मुरली मनोहर जोशी जी का भी नंबर लगा हुआ है? उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोशियारी एवं भुवन चंद्र खंडूरी का भी नंबर लगा हुआ है! पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती तथा कलराज मिश्रा एवं संग प्रिय गौतम जैसे नेता आज किनारे हैं। हिमाचल के शांताकुमार शांत मुद्रा में है। कई बुजुर्ग नेताओं का सम्मान जरूर हुआ है वे राज्यपाल का पद पाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन अभी भी भाजपा की बुजुर्ग नेताओं पर बुढ़ापे की तलवार सीधे-सीधे लटक रही है ।ऐसे में कई बुजुर्ग नेताओं ने अपने पुत्रों को अथवा अपने परिजनों को आगे बढ़ाने की जुगत प्रारंभ कर दी है। भाजपा में एक नाम और था गुजरात में पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल का। जिन्होंने भाजपा में रहते हुए किनाराकसी का दर्द झेला और फिर तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र जी मोदी जी को जाना भी था???
गौरतलब यह भी है कि आडवाणी जी को अपने शायद उन कर्मों का फल मिल रहा है जिनके तहत उन्होंने कभी किसी नेता का लोकसभा का विधानसभा चुनाव में टिकट काटा होगा ।आज उनका भी कट गया कहते हैं। जैसी करनी वैसी भरनी।
भाजपा के कर्णधारो को आज यह जरूर ध्यान रखना होगा कि बुढ़ापा आना अटल सत्य है। आज जो लोग बूढ़े हो चुके हैं वह किनारे लग रहे हैं। तो कल ,जो आज प्रौढ़ हैं वह भी बुढ़ापे का शिकार होंगे। भाजपाई बहुत होशियार हैं वह नई भाजपा के नए संस्कारों को बहुत दिल से आत्मसात कर रहे हैं ।जैसा आज के नेता अपने बुजुर्ग नेताओं का सम्मान कर रहे हैं आज के युवा भाजपाई आगे चलकर बुढ़ापे के आगोश में जा चुके वरिष्ठ भाजपा नेताओं का वैसे ही सम्मान करेंगे? फिलहाल तो आडवाणी जी अब बिल्कुल फुर्सत पा गए हैं। लेकिन उन्होंने सब्र से बैठना चाहिए। क्योंकि उनसे एक जमाने में थोड़ी बहुत खुन्नस रखने वाले डॉ मुरली मनोहर जोशी जी भी उन्हीं की लाइन में लगे हुए हैं !अन्य कई नेताओं का भी नंबर है।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता चर्चा के दौरान दावा करते हैं कि अब भाजपा में एक ऐसा आभामंडल है जो कि अपने किसी भी विरोधी नेता को रहने और पनपने नहीं देना चाहता? उन सभी नेताओं को एक-एक करके किनारे लगाया गया और आगे लगाया जा रहा है जिन्होंने इस आभामंडल से आंख मिलाने की कोशिश की। चर्चा हैं कि देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भी कमजोर करने के सारे प्रयास किए गए। लेकिन श्री सिंह ठहरे घाघ नेता इसलिए वह समय की नजाकत के साथ अपने आप को सुरक्षित करने में सफल रहे। भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं का कहना हैं कि आज की भाजपा का स्वागत है लेकिन भाजपा के बुजुर्ग स्वयं सेवकों के साथ सम्मानित व्यवहार नहीं होना चाहिए। जिस तरह से कृत्य किए जा रहे हैं वह गलत है। कई बुजुर्ग भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि अटल जी के निधन एवं उनके बीमार रहने के समय को हम भूल नहीं सकता। राजनीति के लिए उनकी अस्थियों का किया गया घोर अपमान भी हमें याद है। लेकिन संगठन एवं देश सबसे पहले है ।उसके लिए हम जहां हैं जैसे हैं वहीं रहना है। वह भी जीवन की अंतिम सांस तक। बुजुर्ग भाजपाई कहते हैं कि वैसे भाजपा में अब अटल -आडवाणी- मुरली मनोहर युग का खात्मा हो चुका है ।उस पर केवल औपचारिक मोहर लगनी है। आज भाजपा के बुजुर्ग नेताओं को जबरन बनवास दिए जाने का दंड दिया जा रहा है । जबकि बुजुर्ग नेताओं का सम्मान उनके कद के हिसाब से किया जाना चाहिए । बचपन एवं जवानी जैसे एक बार मिलते हैं वैसे बुढ़ापा भी जीवन में जरूर आता है। सबसे खास बात यह भी है कि भाजपा में जारी मुहिम को देख कर के दूसरे दलों में भी युवा नेताओं का जोश हिलोरे मारने लगा है। वहां के भी बुजुर्ग नेता अब सकते में हैं। क्योंकि देश में अब यह मुहिम बहुत तेजी से प्रारंभ होगी कि बुढ़ापे का शिकार हो चुके नेताओं को कुर्सी खाली करनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में तो समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र को मुख्यमंत्री बना कर के लगभग सब कुछ अपना गवाँ ही चुके हैं? तो वहीं शिवपाल यादव आज नई पार्टी बना कर के संघर्ष कर रहे हैं।आज राजनीति में सम्मान एवं संस्कार की विश्वसनीयता को ठेस पहुंच रही है जिसको बचाने की जिम्मेदारी देश को चलाने का दम भरने वाले नेताओं की ज्यादा है। फिलहाल लालकृष्ण आडवाणी जी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आपने एक लंबा राजनीतिक जीवन जिया। भारतीय राजनीति में आपकी हनक की तूती बोलती रही। आपको भले ही भाजपा के कर्णधारो ने किनारे कर दिया हो लेकिन आप के इतिहास को किनारे नहीं लगाया जा सकता। हां एक बात और श्री आडवाणी जी सब्र करिए !!आगे जोशी जी का नंबर लगा हुआ है ?अन्य कई बुजुर्ग नेता भी लाइन में हैं ?अंत में अब क्या कहें आपकी हिंदुत्व वाली छवि को ले गए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी तो आपकी गांधीनगर सीट को अथवा आपके राजपाट को हथिया ले गए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्षअमित शाह जी?????