रिपोर्ट – रविनंन खजांची / मनीष निगम।
महामारी के कारण बैंकों की ओर से कर्ज की ईएमआई जमा करने पर दी गई मोहलत की अवधि 31 अगस्त को समाप्त होने जा रही है लेकिन केन्द्र सरकार ने ब्याज के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है जिससे उद्योग जगत और व्यापारियों में उहापोह की स्थिति उत्पन हो रही हैl
अर्थव्यवस्था पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को बार-बार टालने पर केन्द्र सरकार से पांच दिन के अंदर जवाब दायर करने के लिए कहा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि सरकार आरबीआई के पीछे क्यों छिप रही है।
जस्टिस अशोक भूषण, आर. सुभाष रेड्डी और मुकेश कुमार शाह की बेंच ने केन्द्र सरकार को 31 अगस्त तक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है और सुनवाई की तारीख 1 सितंबर तय की। वरिष्ठ वकील राजीव दत्ता ने अदालत को बताया कि केन्द्र सरकार ने अभी तक अपना हलफनामा दायर नहीं किया है। हलफनामा दायर करने के लिए हर बार समय ले लिया जाता है। और कितने लोगों ने कर्ज लिया है, इसका आंकड़ा भी पेश नहीं किया जा रहा है। रिजर्व बैंक शुरू से कह रहा है कि वह इस बात को ध्यान में रखेगा कि कितने लोगों ने कर्ज लिया है।
अदालत ने अभियोक्ता जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि केन्द्र ने अभी तक शपथ-पत्र दायर क्यों नहीं किया है। अभियोक्ता ने कहा कि आरबीआई ने छह अगस्त को निर्णय लिया है कि इस मुद्दे पर बैंकों द्वारा क्षेत्रीय आधार पर फैसला लिया जाएगा। इस पर अदालत ने कहा कि यह मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालने जैसा होगा।
केन्द्र सरकार आरबीआई की आड़ में जवाबदेही से बच नहीं सकती।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 31 अगस्त की मोहलत की अवधि खत्म होने वाली है। एक सितंबर से डिफॉल्ट शुरू हो जाएगा। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि याचिकाओं पर निपटारे तक मोहलत की मियाद बढ़ा दी जाए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोविड-19 महामारी के कारण मासिक किस्त के भुगतान को स्थगित करने के दौरान ब्याज पर ब्याज वसूलने का कोई ओचित्य नहीं है। जब मोहलत दी गई है तो उसका वास्तविक लाभ कर्जधारकों को मिलना चाहिए।