हिंदू बौद्ध सिख एससी एसटी की तरह गरीब मुसलमानों को भी दिया जाए एससी एसटी ओबीसी आरक्षण, पसमांदा मुस्लिम समाज के नेता वसीम राईन का बयान!

आदित्य कुमार –

संविधान की धारा 341 पैरा 3 में राष्ट्रपति अध्यादेश, 1950 द्वारा ग़ैर-हिन्दू दलितों को एससी लिस्ट से बाहर कर दिया गया था. 1956 में सिख दलितों और 1990 में नवबौद्ध दलितों को लिस्ट में वापिस शामिल कर लिया गया. लिहाज़ा अब सिर्फ मुस्लिम और ईसाई समाज के दलित एससी लिस्ट से बाहर हैं उक्त विचार सट्टी बाजार स्थित कार्यालय पर महाज़ के लोगो को संबोधित करते हुए ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने व्यक्त किये श्री राईन ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि और ज़्यादातर को सेंट्रल और स्टेट ओबीसी लिस्ट में शामिल किया गया है. यानि कि ओबीसी लिस्ट में हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई पिछड़ों के साथ मुसलमान और ईसाई समाज के दलितों को भी शामिल किया गया है. 1994 में डॉ एजाज़ अली राईन ने आन्दोलन चलाया और 1997 में ‘जिहाद’ टाइटल से छपे पर्चे में यह बताया कि 42 मुस्लिम कमज़ोर जातियों को अगर ओबीसी/एससी/एसटी की समकक्ष हिन्दू जातियों से मिलाएं तो सिर्फ 4-5 जातियां ही पिछड़ी होंगी और बाक़ी सब दलित हैं. उनकी लिस्ट कुछ राज्यों में ओबीसी थीं और कुछ राज्यों में एससी.


बाद में अली अनवर और उनके साथियों ने पसमांदा मुस्लिम महाज़ के ज़रिये एक नयी पहचान ‘पसमांदा’ बनायीं. पसमांदा का इस्तेमाल ओबीसी लिस्ट में शामिल ‘पिछड़े’ और ‘दलित’ मुसलमानों के लिए हुआ क्योंकि दलित मुसलमानों को एससी लिस्ट में धार्मिक पाबंदी होने के कारण ओबीसी लिस्ट में ही रखा जा सकता था. अली अनवर द्वारा लिखित ‘मसावात की जंग’ में साफ़ है कि पिछड़े मुसलमानों की तुलना में दलित मुसलमानों की हालत दयनीय है और उनको एससी लिस्ट में शामिल करना चाहिए. उनहोंने दलित मुसलमानों पर अलग से एक सर्वे किया और बाद में उसे ‘दलित मुस्लमान’ (2004) शीषर्क से किताब के रूप में छपवाया. डॉ एजाज़ अली राईन और अली अनवर अंसारी ने इस मामले में कोई तजाद नहीं है. दोनों दलित मुसलमानों को एससी लिस्ट में शामिल करने के पक्षधर हैं. दोनों मानते हैं की पिछड़े मुसलमानों की स्तिथि दलित मुसलमानों से बेहतर है. तज़ाद सिर्फ इस बात पर है की दलित मुसलमानों की श्रेणी में कौन कौन शामिल होगा? डॉ एजाज़ अली ज़्यादातर कमज़ोर मुस्लिम जातियों को दलित केटेगरी में शामिल करते हैं. अली अनवर और पी. एस. कृष्णन कम मुस्लिम जातियों को दलित केटेगरी में रखते हैं. अपनी किताब ‘दलित मुस्लमान’ में अली अनवर ने शामिल करने व डॉ एजाज़ अली के हिसाब से अंसारी, राइन, मंसूरी, वगैरह भी एससी लिस्ट में शामिल होना चाहिए पसमांदा शब्द का इस्तेमाल ओबीसी लिस्ट में शामिल ‘दलित’ और ‘पिछड़े’ मुसलमानों के लिए 1998 से हो रहा है. पिछले कुछ सालों से इस में ‘आदिवासी’ मुसलमानों को भी शामिल कर लिया गया है. यानि पसमांदा केटेगरी में दलित, आदिवासी और पिछड़े मुस्लमान तीनों आते हैं उस ही तरह जैसे बहुजन केटेगरी में तथाकथित हिन्दुओं के अन्दर दलित, पिछड़े, आदिवासी आते हैं. यानि अब पसमांदा शब्द बहुजन का समानांतर शब्द है, ओबीसी का नहीं विकास के क्रम में देखें तो सब से ज्यादा खराब हालत आदिवासी मुसलमानों की है. उस के बाद दलित मुस्लमान और फिर पिछड़े मुस्लमान. इन तीनों श्रेणियों में बहुत सी जातियां/कबीले आते हैं और किसी की भी नुमायन्दगी उनकी आबादी के हिसाब से संतोषजनक नहीं है. सबकी अपनी अलग-अलग परेशानियाँ और मुद्दे हैं. कुछ मुद्दों के हल सामान्य पालिसी से निकलेंगे और कुछ के लिए विशेष नीतियाँ बनानी पड़ेंगीं. पसमांदा आन्दोलन को लगातार संघर्ष करना पड़ेगा पिछ्ड़े सब एक समान हिन्दू हो या मुसलमान इस अवसर पर महाज़ के तमाम पदाधिकारियो सहित जहरुद्दीन अंसारी,मैनुद्दीन अंसारी,ख्वाज अंसारी,इक़बाल अहमद,इमरान राईन,अशफ़ाक़ राईन,सईद राईन,राजू राईन,सिराज जोगी,असगर अली,मुन्ना राईन अदि लोग मौजूद रहे।

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