अमिताभ ठाकुर, राजेश कृष्णा और राकेश शंकर यह हैं उत्तर प्रदेश के तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी जिनको सरकार ने नौकरी से बाहर कर दिया है।
यह अधिकारी अब भारी भरकम सरकारी वेतन और सुविधाओं से वंचित हो जाएंगे और अब यह सरकारी अधिकारी नहीं कहे जाएंगे। इन अधिकारियों पर सरकारी सेवाओं के प्रति उदासीनता और लापरवाही और भ्रष्टाचार का आरोप था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इनके विरुद्ध भारत सरकार के गृह मंत्रालय को कार्यवाही के लिए लिखा था गृह मंत्रालय की कमेटी ने इन सभी अधिकारियों के कार्यशैली और उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों की गंभीरता से जांच की जिसके बाद यह निर्धारित किया गया कि यह तीनों आईपीएस अधिकारी सरकारी सेवा के लिए उपयोगी नहीं है इसलिए सरकार को इनकी सुख सुविधाओं के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी धन नहीं खर्च करना चाहिए और उन्हें सेवा से बाहर कर देना चाहिए।
अमिताभ ठाकुर आईजी रूल एवं मैनुअल के पद पर तैनात थे सरकारी अधिकारी होते हुए समाज सेवा और राजनैतिक विषयों में ज्यादा रुचि लेते थे ऐसा माना जाता है कि इन्हीं वजहों से उन्हें हटाया गया अखिलेश यादव की सरकार में भी इनके खिलाफ कार्रवाई हुई थी और योगी सरकार ने भी इन्हें सरकारी सेवा के लिए उपयुक्त नहीं पाया।
दूसरा नाम है राजेश कृष्णा का जोकि बाराबंकी 10 वीं बटालियन पीएसी में सेनानायक थे इनके ऊपर आरोप है कि आजमगढ़ में यह पुलिस भर्ती घोटाले में शामिल रहे इन्होंने पुलिस भर्ती में भ्रष्टाचार किया और जांच में इन के विरुद्ध लगाए गए आरोप साबित हुए।
इसी तरह एक और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राकेश शंकर को भी सरकारी सेवा से बाहर कर दिया गया है यह
डी आई जी स्थापना के पद पर तैनात थे देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में इनकी भूमिका संदिग्ध पाई गई ।
उत्तर प्रदेश सरकार के गृह विभाग ने इन तीनों आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ केंद्र सरकार से कार्रवाई के लिए संस्तुति की थी और विस्तृत जांच के बाद यह कठोर कार्रवाई की गई है तीन आईपीएस अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देकर सरकार ने लापरवाही बरतने वाले अफसरों और कर्मचारियों को एक बड़ा संदेश देने का प्रयास किया है।
रिपोर्ट – नितेश मिश्रा