नन्हे अभिनंदन के जीवन के लिए सीमाओं से आगे बढ़कर रक्षक बने डीएम सत्येंद्र कुमार!

द इंडियन ओपिनियन
बाराबंकी

दुनिया के सबसे बड़ी जनसंख्या वाले भारतवर्ष में तमाम सरकारी योजनाओं के बावजूद बड़ी संख्या में कमजोर गरीब लोग सिर्फ इसलिए अपने हिस्से की जिंदगी नहीं जी पाते क्योंकि कई बार अशिक्षा के साथ गरीबी भी मौत का दूसरा नाम बन कर उन्हें निगल लेती है।

एक डेढ़ वर्षीय मासूम बच्चा मौत की दहलीज तक इसलिए पहुंच गया क्योंकि उसके संरक्षक उसके माता-पिता गरीबी अशिक्षा और सरकारी तंत्र तक पहुंच के अभाव में केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की सहायता नहीं ले पाए।

लखीमपुर जनपद के निवासी कुलदीप गैर जनपद में रहकर जीवकोपार्जन करते हैं और अपने परिवार को हर महीने कुछ पैसे भेजते हैं जिससे उनकी गुजर बसर होती है। कुलदीप के डेढ़ वर्षीय बेटे की तबीयत खराब थी तो किसी की सलाह पर कुलदीप की पत्नी अपनी बहन के साथ उसे बाराबंकी के सफेदाबाद स्थित हिंद मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विशेषज्ञ के पास ले आई । पहले भी उस चिकित्सक ने इस बालक का इलाज किया था इसलिए परिजनों को उनमें आस्था थी।

यहां चिकित्सक ने देखा कि बच्चों को गंभीर स्तर का निमोनिया हो गया है और वह सांस लेने में भी असुविधा महसूस कर रहा है बालक अभिनंदन की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी इसलिए चिकित्सक ने उसे बाल गहन चिकित्सा कक्ष (पी आई सी यू) में वेंटिलेटर यानी जीवन रक्षा प्रणाली के साथ भर्ती करने का सुझाव दिया।

परेशान परिजन हिंद अस्पताल में ही रोने बिलखने लगे । PICU में वेंटिलेटर सीमित मात्रा में होने की वजह से काफी देर तक बच्चे को वेंटिलेटर सपोर्ट नहीं मिल सका । उसकी हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। परिजनों के पास दवाओं,वेंटीलेटर और PICU का खर्च जमा करने के पैसे भी नहीं थे फिर भी मेडिकल स्टूडेंट और युवा चिकित्सकों ने ऑक्सीजन के जरिए उसकी हालात संभालने की कोशिश की । मैन्युअल पंपिंग के जरिए श्वसन प्रणाली को सहारा देने का प्रयास किया परंतु हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी।

अस्पताल में मौजूद कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने परिवार का मनोबल बढ़ाया । इस बात की खबर किसी तरह बाराबंकी के जिला अधिकारी सत्येंद्र कुमार को मिली तो उन्होंने संवेदनशीलता और गंभीरता दिखाते हुए तुरंत ही मासूम अभिनंदन की जीवन रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करने का आश्वासन दिया और संबंधित को निर्देशित किया कि अभिनंदन के बेहतर इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए ।


जिला अधिकारी ने मानवता का परिचय देते हुए एक निजी अस्पताल में भर्ती बालक को जो की मृत्यु से संघर्ष कर रहा था उसकी रक्षा का संकल्प लिया और कुछ ही तौर पर देर में हिंद अस्पताल का माहौल बदल गया । सभी जीवन रक्षक दावों के साथ तमाम वरिष्ठ चिकित्सक अभिनंदन के इलाज में जुट गए।
कई सरकारी अधिकारी अभिनंदन के सेहत की जानकारी लेने के लिए हिंद अस्पताल पहुंचे आमतौर पर सरकारी अस्पतालों पर जिला अधिकारी का प्रशासनिक नियंत्रण होता है परंतु निजी अस्पताल में व्यवस्थाओं को अपने हिसाब से सुनिश्चित करना थोड़ा जटिल होता है फिर भी जिलाधिकारी ने व्यक्तिगत रुचि लेते हुए बालक अभिनंदन के लिए महंगी जीवन रक्षक दावों का प्रबंध कराया और यह भी कहा कि जैसे ही बालक की हालत में जरा सा भी सुधार हो और उसे लखनऊ के उच्च स्तरीय सरकारी अस्पतालों में ले जाया सके तो उसे तुरंत वेंटिलेटर युक्त एंबुलेंस से लखनऊ के अच्छे अस्पताल में भेज कर उसका इलाज कराया जाएगा ।


गरीब परिवार में जन्म लेने वाले बालक अभिनंदन का जीवन अभी भी मझधार में है लेकिन कहा जाता है कि डूबते हुए के लिए तिनके का सहारा ही बहुत होता है । अभिनंदन के लिए तो स्वयं बाराबंकी के जिला अधिकारी ने अपना संरक्षण प्रदान करके उसके परिजनों को नई हिम्मत दे दी है।

उसकी मां के आंखों से लगातार बहने वाले आंसू अब थम गए हैं उसे भरोसा है की अभिनंदन के जीवन की डोर अब नहीं टूटेगी गरीबी का दानव अभिनंदन से पराजित होकर वापस लौटेगी।

समाज के सक्षम संवेदनशील जनों से द इंडियन ओपिनियन की अपील है कि जो भी लोग बालक अभिनंदन के परिजनों की सहायता करना चाहते हैं वह हिंद मेडिकल कॉलेज के गहन बाल रोग चिकित्सा कक्ष PICU में उसके परिजनों से संपर्क कर सकते हैं।

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