उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मशहूर ईमाम्बाड़े एवं ईमाम्बाड़े की आसिफी मस्जिद में मरम्मत के नाम पर हो रही खाना पूर्ती।
यह राजधानी लखनऊ की ईमारत बड़े ईमाम्बाड़े एवं रूमि गेट के नाम से देश ही नहीं विश्व में जानी जाती है।
यही नहीं इस विश्विख्यात ईमारत से सरकार को सालाना करोड़ों रूपये की आमदनी भी होती है जिसके रख रखाओ की ज़िम्मेदारी भी सरकार की बनती है।
मगर अफ़सोस कि जब कभी इस ईमारत की मरम्मत होती है तो मात्र खाना पूरी कर हुसैनाबाद ट्रस्ट अपना दामन झाड़ लेता है।
जहां तक हुसैनाबाद ट्रस्ट का मामला है तो वो ज़िला इंतेज़ामिया के अंतर्गत आता है जिसके चेयरमैन ज़िलाधिकारी एवं सचिव अपरज़िलाधिकारी होते हैं,
जहां आम आदमी का हस्तक्षेप करपाना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन है अब सवाल पैदा होता शिकायत करे कौन और किस से करे ? जब कभी स्थानीय जनता धरने प्रदर्शन का एलान करती है तो इस ईमारत की टीप टॉप हो जाती है।
जैसे अभी हो रही मरम्मत के नाम पर मात्र पुताई हो रही है जबकि गुम्बद से लेकर मस्जिद के दरों मेन गेट में बड़ी बड़ी दरारें साफ साफ नज़र आरही है जो शायद हुसैनाबाद ट्रस्ट के ज़िम्मेदारों को नज़र नहीं आरही।
दीवारों से लेकर गुम्बद गेट में पड़ी दरारें किसी भी समय कोई अप्रिय घटना को दे सकती हैं दावत, या फिर यूँ समझ लें कि हुसैनाबाद ट्रस्ट के ज़िम्मेदार किसी बड़ी घटना का कर रहा है इंतेज़ार,
समाजिक शिया संगठन जो बात बात पर करते हैं लुंगी डांस उनको भी शायद मस्जिद से लेकर ईमाम्बाड़े तक बड़ी बड़ी चटकी दीवारें गुम्बद में पड़ी दरारें और गेट शायद नज़र नहीं आरहे हैं।
जबकि ईमाम्बाड़े और मस्जिद में सिर्फ सामने सामने रंग रौगन किया जा रहा है बाक़ी पीछे के हिस्से जो बहुत कमज़ोर हो चुके है जिसमें बड़े बड़े गड्ढे साफ नज़र आरहे हैं,
आखिर क्या हुसैनाबाद ट्रस्ट या फिर सरकार की ऐसी कोई नीति है कि नवाबीन अवध की बनी ईमारतों को खस्ता हाल छोड़ कर गिरने पर मजबूर किया जा रहा है?
आखिर क्या इरादा है सरकार और हुसैनाबाद ट्रस्ट का यह जनता में चर्चा का विषय बना हुआ है