द इंडियन ओपिनियन
लखनऊ
दीपक मिश्रा “दीपेश”
भारतीय संस्कृति में पिता-पुत्र का संबंध दैवीय कृपा से प्राप्त एक महाप्रसाद है इस संबंध के प्रेम और परस्पर निष्ठा व समर्पण को किसी भी भाषा के शब्दों से लिखना और व्यक्त करना आसान नहीं है ….
लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि वह पिता सौभाग्यशाली होते हैं जिनके पुत्र उनकी उपस्थिति के दौरान उन्हें सम्मान देते हुए उनके बताए हुए संस्कारों और मूल्यों का निर्वहन करते हैं और उनके ना रहने पर और भी अधिक गंभीरता से उनके द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलते हुए उनके दिखाएं पद चिन्हों को अपने जीवन की सफ़लता का महामार्ग बना लेते हैं और वह पुत्र भी परम सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें ऐसे पिता की छत्रछाया मिलती है जिनका व्यक्तित्व इतना व्यापक होता है की उनके ना रहने पर भी हजारों लोग उनके विचारों को अपना मार्गदर्शक मान लेते हैं।
उत्तर भारत के महान इतिहासकार साहित्यकार व सारस्वत परंपरा के संवाहक प्रोफेसर शैलनाथ चतुर्वेदी के महान जीवन और उनकी कृतियों को सरलता से समाज के बीच में रखने के लिए ज्येष्ठ पुत्र आनंद कृष्ण चतुर्वेदी और उनके अनुज आईपीएस
डॉ अरविंद चतुर्वेदी ने मिलकर एक पुस्तक का संपादन किया और इस पुस्तक का विमोचन शुक्रवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक मालवीय सभागार में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक राय ने किया….
प्रोफेसर शैलनाथ चतुर्वेदी कि सज्जनता उनकी विद्वता और सामाजिक चेतना के हित में उनके कार्यों का दायरा इतना बड़ा था की पुस्तक के विमोचन में शामिल होने के लिए देश के कई क्षेत्रों से हिंदी भाषा और इतिहास के कई विद्वानों ने हिस्सा लिया । प्रोफेसर चतुर्वेदी को याद करते हुए लोगों ने उनकी स्मृतियों पर भावुक होकर चर्चा की । मालवीय सभागार में कई प्रेरक जीत भी गाए गए ।
कार्यक्रम के समाप्त होने पर संचालक हिंदी के मर्मज्ञ विद्वान अजय कुमार पांडे और पुस्तक के संपादक आईपीएस डॉ अरविंद चतुर्वेदी ने संवेदित मन से प्रोफ़ेसर शैलनाथ नाथ चतुर्वेदी को याद करते हुए आज के वर्तमान भारत में उनके आदर्शों उनके जीवन दर्शन का महत्व बताया।
इस कार्यक्रम में खासतौर पर लखनऊ और गोरखपुर से कई गणमान्य लोगों ने हिस्सा लिया और देश के अन्य हिस्सों से भी प्रोफेसर चतुर्वेदी से जुड़े रहे विद्वानों ने शामिल होकर अपने विचार रखे।