पुलिस में सहायक उप निरीक्षक के पदों पर आउटसोर्सिंग पर घमासान क्यों? समझनी होगी विभाग की चुनौतियां

The Indian Opinion

Prashant Mishra

लखनऊ। पुलिस विभाग में सहायक उप निरीक्षक लिपिक, लेखा व गोपनीय के पदों पर आउटसोर्सिंग भर्ती को लेकर प्रभाकर चौधरी पुलिस उप महानिरीक्षक स्थापना की ओर से पिछले दिनों जारी पत्र पर खूब घमासान हुआ। पत्र पर हुई राजनीति के बाद पुलिस विभाग ने पत्र वापस ले लिया। विरोध के बाद पत्र भले वापस वापस ले लिया गया हो लेकिन विभाग में स्टाफ की कमी की चुनौतियों के बारे में भी विचार करना होगा।

पुलिस विभाग के एक वरिष्ट अधिकारी का कहना है कि इस पत्र में ऐसा कुछ नहीं था जिस पर सवाल खड़े किए जाएं। पत्र के दूसरे पैराग्राफ की दूसरी लाइन में ही लिखा है कि पुलिस विभाग के नियमित नियतान के अतिरिक्त यदि सेवाएं लेनी हो तो, उसके लिए एक नीति निर्धारण होनी चाहिए जिसके लिए यह अभिमत एकत्र किया जा रहा था। क्योंकि यही पुलिस अधीक्षक रेंज और जोन के अधिकारी लगातार अतिरिक्त बल की मांग करते हैं इसलिए उनसे फीडबैक लिया जा रहा था। जिसमें गलत क्या था?

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

विभाग में आउटसोर्सिंग भर्ती को लेकर कई अधिकारियों व रिटायर्ड पुलिस कर्मचारियों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस बात को भी समझना होगा कि पुलिस जैसे महत्वपूर्ण विभाग में कर्मचारियों की कमी को दूर किया जाए, ऐसे में यदि रेगुलर भर्ती होती हैं तो सबसे बढ़िया है अन्यथा कोई विकल्प तलाशना ही होगा।

राजनीतिक स्टंट की भेंट चढ़ गई पुलिस विभाग की एक सकारात्मक पहल

विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने कहां कि पत्र को पढ़े बिना सिर्फ आउटसोर्सिंग के नाम पर हुई राजनीतिक बयान बाजी ने इस योजना को शुरू होने से पहले ही समाप्त कर दिया। पुलिस के 3:350 लाख से अधिक संख्या बल का व्यक्तिगत डाटा, पी०एनओ० प्रणाली, मानव संपदा पोर्टल, वेतन निर्धारण, आडिट व स्थानांतरण प्रणाली में डाटा फीडिंग की आवश्यकता होती है। पुलिस विभाग के तमाम कल्याणकारी कायों में डाटा फिडिंग एक आकस्मिक रूप से आने वाला बड़ा काम है जो ऑफिस के नियमित स्टाफ से समय रहते संभव नहीं होता है। पुलिस विभाग में केवल मजदूर बाहर से लिए जाने के प्रावधान है। किसी भी प्रकार के विशेषज्ञ की सेवाएं या किसी भी प्रकार के डाटा ऑपरेटर या अकाउंट्स या इस प्रकार के जो तकनीकी रूप से जटिल कार्य हैं उसमें बाहर से सेवाएं लेने का कोई प्रावधान नहीं है। प्रत्येक बार ये सेवाएं लेने के शासन से अनुमति लेनी पड़ती है।

गलत फीडिंग आज भी बनी है विभाग के लिए सर दर्द

पुलिस विभाग के एक आला अधिकारी का तर्क है कि पूर्व में भी भारत सरकार ने जब सीसीटीएनएस प्रोजेक्ट लॉन्च किया था तो उसमें अपराध व अपराधियों का डाटा फीडिंग के लिए बाहर की एक एजेंसी को ठेका दिया था। उस एजेंसी ने इतनी गलत फीडिंग की जिससे आज तक वह डाटा पुलिस विभाग के काम नहीं आ सका है। अगर यही कार्य आउटसोर्सिंग के माध्यम से पुलिस विभाग की देखरेख में हुआ होता तो फीडिंग गलत नहीं होती।

आए दिन होती है असुविधा

विभाग के महत्वपूर्ण कार्यों के लिए सभी जनपद के पुलिस अधीक्षक, रेंज के अधिकारी, जोन के अधिकारी जब ऐसे काम होते हैं तो या तो स्थापना अनुभाग से अतिरिक्त बल की मांग करते हैं या अपने ही अधीनस्थ तैनात सिपाहियों को इस काम में लगाते हैं। अनेक बार समय से कर्मचारी न मिलने से विभाग का कार्य पीछे रह जाता है। मानव संपदा पर डाटा फीडिंग में पुलिस विभाग सबसे फिसड्डी है, कारण सिर्फ यही है कि डाटा फीड करने के लिए दक्ष स्टाफ नहीं है। डाटा फीडिंग में दक्ष स्टाफ न होने के कारण हीनियस क्राइम मॉनिटरिंग सिस्टम आज तक उत्तर प्रदेश पुलिस लागू नहीं कर सकी।

स्टाफ की कमी के चलते फील्ड के कर्मचारियों को करना पड़ता है काम

आज भी पुलिस विभाग में लिपिकीय संवर्ग की संख्या इतनी कम है कि हजारों की संख्या में पुलिस कांस्टेबल लिपिक का काम कर रहे हैं। एक तरह से देखा जाए तो इससे जहां थानों में संख्या बल घट रहा है कानून व्यवस्था की ड्यूटी भी प्रभावित हो रही हैं। वहीं पर यह भी एक आउटसोर्सिंग का ही स्वरूप बन गया है। जब भी इस तरह के बड़े काम आते हैं तुरंत फील्ड से सिपाही और हेड कांस्टेबल संबद्ध कर दिए जाते हैं।

सरकार के ज्यादातर विभागों में आउटसोर्सिंग से हो रही भर्ती

आउटसोर्सिंग की यह प्रणाली उत्तर प्रदेश सरकार के प्रत्येक विभाग में पहले से प्रचलित है। यहां तक की उत्तर प्रदेश पुलिस में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की लगभग 70% आवश्यकता आउटसोर्सिंग से ही चल रही है। पुलिस विभाग के एक अधिकारी का नाम न बताने की शर्त पर कहना है कि राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा युवाओं में नौकरी खत्म करने का भ्रम फैलाकर इस योजना की भ्रूण हत्या कर दी गई। जिससे भविष्य में हजारों युवक आउटसोर्सिंग के लाभ से वंचित कर दिया।

शासन नियमित भर्ती के लिए अनुमति नहीं दे रहा ऐसे में आउटसोर्सिंग विकल्प

शासन गोपनीयता और व्यवस्था के नाम पर पुलिस विभाग को किसी भी प्रकार के तकनीकी पदों पर नियमित भर्ती नहीं करने देना चाहता है जैसे ड्राइवर और आर्मोरर(शस्त्र मरम्मत) पीटीआ,( पीटी टीचर), आईटीआई( शस्त्र इंस्ट्रक्टर), कंप्यूटर कार्य आदि। इन पदों के लिए टेक्निकल दक्ष व्यक्ति की आवश्यकता होती है लेकिन शासन इनकी भर्ती की अनुमति नहीं देता है। जिसके चलते पुलिस विभाग अपने ही सिपाहियों को लोकल ट्रेनिंग देकर उनसे सारे काम ले रहा है। जिस कारण शास्त्रों के रखरखाव और ट्रेनिंग की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

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