लाल बहादुर शास्त्री का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है वह खुद में एक परिचयस्वरूप हैं।सादगी भरा जीवन और देश के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित उनकी शख्सियत रही है।उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय(वाराणसी)मैं हुआ था।
शास्त्री जी की शिक्षा-दीक्षा हरिशचंद हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई।18 महीने की उम्र में ही शास्त्री जी के पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव का निधन हो गया था।उसके बाद का पालन-पोषण उनकी माताजी रामदुलारी द्वारा अपने पिता हजारीलाल के घर पर ही हुआ। काशी विद्यापीठ में ही उन्हें शास्त्री के नाम से नवाजा गया।जिसके उपरांत उनका नाम लाल बहादुर शास्त्री ही रहा।
संस्कृत में स्नातक करने के पश्चात शास्त्री जी भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देश सेवा में लीन होकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।वह पूरी तरह से गांधी वादी विचारधारा से जुड़े हुए थे।उन्होंने गांधीजी के साथ ही 1921 का असहयोग आंदोलन,1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई जिसके चलते वह कई बार जेल भी गए।
शास्त्री जी के राजनीतिक पथ प्रदर्शकों में पंडित गोविंद बल्लभ पंत पुरुषोत्तम दास टंडन के अलावा जवाहरलाल नेहरू शामिल थे। जवाहरलाल नेहरू से नजदीकियों के चलते शास्त्री जी का कद निरंतर बढ़ता रहा और उन्होंने नेहरुजी के मंत्रिमंडल काल में गृह मंत्री के प्रमुख पद को ग्रहण किया।इतना ही नहीं,नेहरूजी के निधन के बाद 1964 में भारत के प्रधानमंत्री भी बने।
शास्त्री जी की शीर्ष प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्य को बढ़ने से रोकना था और ऐसा करने में सफल भी रहे।इस बीच 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया जिसके प्रतिउत्तर में भारतीय सेना भी लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुंच गई।जिससे घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की अपील की।उसके बाद एक सोची समझी साजिश के तहत शास्त्री जी को रूस की राजधानी ताशकन्द बुलाया गया। समझौता वार्ता में शास्त्री जी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब मंजूर है परंतु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज मंजूर नहीं।काफी जद्दोजहद के बाद शास्त्री जी पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर उस समझौते पर हस्ताक्षर करवाए गए।किंतु शास्त्री जी ने बोला कि हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं लेकिन यह जमीन कोई दूसरा प्रधानमंत्री ही लौटाएगा,वे नहीं।पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध विराम के इस समझौते के बाद उसी रात 11 जनवरी 1966 को उनकी मृत्यु हो गई। जोकि आज भी एक रहस्य बना हुआ है कि वास्तव में उनकी मृत्यु हृदयाघात से हुई या उनको जहर दिया गया था।
शास्त्री जी को उनकी सादगी देश के प्रति ईमानदारी और उनके देश प्रेम के लिए सदैव याद किया जाता है।उनको मरणोपरांत 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
सरदार परमजीत सिंह