वाराणसी :गोरखा ट्रेनिंग सेंटर ने भारतीय सेना को दिए 64 गोरखा जांबाज।

वाराणसी में शुक्रवार को छावनी क्षेत्र स्थित 39-गोरखा ट्रेनिंग सेंटर में 64 रंगरूट भारतीय सेना का अभिन्न हिस्सा बने। इस दौरान रंगरूटों ने पवित्र ग्रंथ गीता पर हाथ रखकर भारतीय संविधान में आस्था रखने, देशभक्ति और भारतीय सेना में कर्तव्यनिष्ठा से सेवा करने का संकल्प लिया। परेड के बाद गोरखा जवानों को उनका परंपरागत हथियार खुखरी भेंट किया गया। रंगरूटों के परेड की सलामी ट्रेनिंग सेंटर के कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर हुकुम सिंह बैंसला ने ली। समारोह में कोविड-19 की गाइडलाइन का पूरी तरह से पालन किया गया।
जवानों के शपथ लेने का अंदाज भी अनूठा था। जवानों ने कहा- ‘जब कभी भी जमीन, हवा और पानी के रास्ते भेजा जाएगा, जाऊंगा। भारतीय संघ के अधिनायक और सेना के उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करूंगा। चाहे इसके लिए जीवन ही क्यों न बलिदान करना पड़े!’


भारतीय सेना का हिस्सा बने रंगरूटों ने पासिंग आउट परेड से पहले 39 GTC में 42 हफ्ते का कठिन प्रशिक्षण लिया। उन्होंने यह सीखा कि विषम परिस्थितियों में भी रहकर वह देश के लिए ही जिएंगे और मरेंगे। दुश्मन देश के सामने कभी सिर नहीं झुकाएंगे और भारत भूमि की रक्षा के लिए जरूरत पड़ी तो हंसते हुए शहीद हो जाएंगे। गोरखा रेजीमेंट के पाइप बैंड की धुन के बीच पासिंग आउट परेड के बाद रंगरूट स्मृति धाम पहुंचे और शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
वहीं, रंगरूटों को बधाई देते हुए ब्रिगेडियर हुकुम सिंह बैंसला ने कहा कि एक सैनिक को हमेशा अनुशासन, अपनी फिटनेस और शस्त्र के ठीक से रखरखाव पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। विपरीत परिस्थिति में भी हौसला बुलंद रखना चाहिए और देशभक्ति के जज्बे से ओतप्रोत रहना चाहिए। अच्छी शिक्षा ग्रहण करने और रोजाना कुछ नया सीखने पर ध्यान देना चाहिए।

ब्रिगेडियर ने कहा कि बदलते परिवेश के साथ युद्ध के तौर-तरीके में हो रहे बदलाव और तकनीक में सैनिक को पारंगत होना चाहिए। पासिंग आउट परेड कार्यक्रम में एनसीसी कैडेट्स, विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राएं, सेना के अफसर और रंगरूटों के परिजन मौजूद रहे।
39 GTC के अफसरों के अनुसार साल 1952 से पहले गोरखा के 2 राइफल्स प्रशिक्षण केंद्र थे। 1 अक्टूबर 1952 को दोनों केंद्र को मिलाकर एक कर दिया गया और इस तरह से 39 GTC की नींव पड़ी। उस दौरान 39 GTC का प्रशिक्षण केंद्र देहरादून के बीरपुर में था। 1 जनवरी 1976 को बीरपुर से 39 GTC को वाराणसी स्थानांतरित कर दिया गया। उसी वक्त से यहां गोरखा जवानों को प्रशिक्षित कर भारतीय सेना के लिए तैयार किया जाता है।

रिपोर्ट – आर डी अवस्थी

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