पत्रकारिता के नैतिक आयाम स्वच्छ एवं नशा मुक्त भारत विषय में संगोष्ठी का आयोजन एवं विशिष्ट पत्रकार सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।

पत्रकारिता के नैतिक आयाम स्वच्छ एवं नशा मुक्त भारत विषय में संगोष्ठी का आयोजन एवं विशिष्ट पत्रकार सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।

भारतीय नागरिक परिषद के तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी प्रमोद कुमार शुक्ला की अध्यक्षता में आयोजित हुई । कार्यक्रम का संचालन करते हुए महामंत्री रीना त्रिपाठी ने कहा कि समाज का चौथा स्तंभ पत्रकार मजबूत, खुशहाल, स्वस्थ होगा तो देश के विकास रथ को स्वयं गति प्राप्त होगी।
मुख्य अतिथि मा.कौशल किशोर ने कहा कि वर्तमान समय में नशा मुक्ति कहीं अधिक प्रासंगिक है गांधी जी, लाल बहादुर शास्त्री जी के सपनों के भारत में जब नई युवा पीढ़ी ही नशे में गर्त में चली जाएगी तो विकसित समाज की कल्पना सत प्रतिशत कैसे साकार होगी। आज जरूरी है समाज का चौथा स्तंभ मीडिया जागरूकता अभियान चलाए ताकि उस दर्द से देश को बचाया जा सके जब देश के बूढ़े कंधे युवा पीढ़ी के नशे में धुत शरीरों की बढ़ती संख्या के बोझ भी न उठा पाने की स्थिति में पहुंच जाए।
उन्होंने कहा आज नशा मुक्ति अभियान से सभी युवाओं को जोड़ना बहुत जरूरी है जो अभी तक किसी भी प्रकार के नशे के शिकार नहीं है इस मुहिम में माता-पिता ,दोस्त रिश्तेदार सहित पत्रकारों की महती भूमिका होगी।

विशिष्ट अतिथि मा. राजेश्वर सिंह ने कहा कि गांधी जी वा गांधीवाद अस्पृश्यता , कुरीतियों, स्वच्छता व समय बध्यता नैतिकता नशा मुक्ति हेतु सदैव प्रासंगिक रहेगा । देश को सदा इमानदारी और आत्मनिर्भरता की सीख देने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी आज भी युवाओं के लिए मार्गदर्शक हैं।भारत सरकार व राज्य सरकार की योजनाएं समय से निचले पायदान पर पहुंचे वर्तमान की आवश्यकता है इस पूरी व्यवस्था में सक्रिय योगदान पत्रकार निभाते हैं। आज भी समाज में न्याय पूर्ण व्यवस्था स्थापित हो सके इसके लिए जनप्रतिनिधि और जनता के बीच के महत्वपूर्ण कड़ी पत्रकार होते हैं।

युवा प्रतिनिधि के रुप में बोलते हुए विकास किशोर ने कहा पत्रकारों के सामाजिक, राजनैतिक आर्थिक हित से ही समाज का हित है ।नशे की लत में फस कर जिस प्रकार मैंने अपना भाई को असमय खोया है अन्य युवाओं को बचाने की मुहिम जरूरी है।

मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन ने कहा आज पत्रकारिता संकट में है। इसके लिए कोई एक सरकार या कोई एक विशेष कालखंड जिम्मेदार नहीं है। अगर कोई व्यक्ति किसी खास सरकार या किसी खास काल-खंड पर इसका दोष मढ़ता है तो यह बेईमानी है। खंडित आजादी के बाद से लगातार, लोकतंत्र की हिफाजत के लिए निरंतर चलने वाले सांकेतिक प्रतिरोध की प्रक्रिया को भोथरा किया गया है। यह केवल पत्रकारिता के साथ नहीं हुआ। बड़े सोचे समझे तरीके से लोकतंत्र की हिफाजत करने वाले अवयवों को पंगु बनाया गया। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता जर्जर होती गई तो लोकतंत्र भी खोखला होता चला गया। इससे क्रमशः पूरा समाज ही धारहीन और प्रभावहीन होता गया।
पत्रकारिता नैतिक-अपवित्रता और प्रलोभन के घोर नशे के बीच फंस गई है। आप यह कह सकते हैं कि इन दो पाटों के बीच सच फंस गया है। सच को बेचने का नहीं, सच को मरने से बचाने का समय है। कहीं ऐसा न हो कि प्रायोजित सच, मौलिक सच का स्थान ले ले और हमारा समाज कृत्रिम सच के संसार में समाहित हो जाए। ऐसा तेज गति से हो रहा है, इसे रोकना होगा… अब समय कम है।

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