देश सावधानी और आर्थिक संकट से दो चार मौलाना सय्यद काब रशीदी चेयरमैन रेक्ट ऑफ लीगल सेल स्वतंत्र भारत में पहली बार डॉलर के मुकाबले रूपया इतना कमजोर हुआ है

देश सवैधानि और आर्थिक संकट से दो चार मौलाना सय्यद काब रशीदी चेयरमैन रेक्ट ऑफ लीगल सेल स्वतंत्र भारत में पहली बार डॉलर के मुकाबले रूपया इतना कमजोर हुआ है, रूपये का इस तेजी से गिरना देश में गंभीर आर्थिक संकट की ओर इशारा कर रहा है। जहां इंसानों की बुनियादी जरूरतें महंगी होती जा रही है और आमदनी (आया) में काफी गिरावट आई है। देश के जो संस्थान युवाओं के लिए रोजगार पैदा करते हैं, उन्हें कुछ दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए कौड़ियों में बेचा जा रहा है और बड़ी संख्या में युवा जो किसी भी देश का भविष्य होता है, वह अपनी डिग्री लेकर बेरोजगार घुम रहा है।
हर जिले में हजारों युवा ऐसे है जिन्हें अपनी योग्यता के बावजूद रोजगार हासिल करने में नाकाम है।
हाल ही में विश्व बैंक ने भारत को आर्थिक भविष्य के संबन्ध में चेतावनी दी है। भारत के पडोस ऐसे देश भी है जिनकी जी.डी.पी. हमसे काफी बेहतर है। सरकार अपनी कमजोरियों को सुधारने के बजाय देश को धार्मिक नफरत के माहोल में धकेल रही है। जब लोग रोजगार व आर्थिक संकट, और देश में बढ़ती महंगाई के बारे में पूछते हैं, तो बड़ी चतुराई के साथ हिन्दू-मुसलमान के नाम पर बांटने की राजनीती को हवा दी जाती है।
कभी कोई सांसद देश के दूसरे सबसे बड़े बहुमत के नरसंहार की बात करता है तो कभी कोई मुसलमानों के आर्थिक वहिष्कार की अपील करता नज़र आता है और देश की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था मूकदर्शक बनी रहती है। यह इस बात का परिणाम है कि नफरत फैलाने वाले मासिक रोगी नहीं है बल्कि एक राजनेतिक विचार धारा का हिस्सा है चुनांचे देश में आर्थिक संकट की जगह नफरत पर बहस गरम
होजाती है. देश के सबसे अहम सवालो को उस किनारे पर पहुंचा दिया जाता है जहां जवाब की उम्मीद खत्म हो जाती है। लेकिन ये सब ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है।
देश में 80 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। और देश में असमानता इतनी अधिक है कि देश की 10 प्रतिशत जनता के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत है। मुसलमानों के वास्तविक शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के बजाय, सरकार मदारिसे इस्लामिया को आलोचना का निशाना बना रही है जिस मे केवल प्रतिशत मुसलमान शिक्षा के लिए आते हैं। वरना 97 प्रतिशत मुसलमान Advance education (उन्नत शिक्षा) की ओर जा रहे हैं। जिसके लिए वर्तमान में कोई उपयुक्त नीति दिखाई नहीं दे रही है। सरकार मुसलमानों के लिए स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बनाएं और शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास करे।

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