“समाजवादी लीडरशिप” का नया केंद्र सुरेंद्र सिंह वर्मा, राकेश वर्मा या फिर सुरेश यादव के लिए बनेंगे चुनौती??

बाराबंकी जनपद में हालिया राजनीतिक घटनाक्रम में सुरेंद्र सिंह वर्मा का सियासी किरदार पहले से कहीं अधिक मजबूत बनकर सामने आया है। भारतीय जनता पार्टी में रहते हुए उन्होंने बड़ी संख्या में भाजपा के ब्लॉक प्रमुख बनवाए और जिला पंचायत अध्यक्ष पर भी भाजपा का कब्जा करवाया  विधानसभा चुनाव के दौरान सुरेंद्र सिंह वर्मा का परिवार बीजेपी से नाराज हुआ तो कुर्मी समाज के वोटर्स के बड़े हिस्से का भी बीजेपी से मोहभंग हुआ नतीजा यह हुआ कि रामनगर और जैदपुर विधानसभा में कुर्मी वोटरों ने बड़ी संख्या में सुरेंद्र सिंह वर्मा की अपील को स्वीकार करते हुए भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए वोट किया।

“कई चुनाव में सुरेंद्र सिंह वर्मा दिखा चुके हैं अपनी ताकत”

सदर विधानसभा में भी कुर्मी मतदाता एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में नहीं गया, जिसकी वजह से सुरेश यादव लगातार तीसरी बार आसानी से नवाबगंज की सीट जीतने का रिकॉर्ड बना पाए। वैसे राजनीतिक रूप से, केंद्रीय मंत्री रह चुके स्वर्गीय बेनी प्रसाद वर्मा ने जिले में जो सियासी किरदार हासिल किया उसका अभी तक कोई मुकाबला नहीं है, उनके बेटे राकेश वर्मा उनकी राजनीतिक विरासत को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन लगातार विफलता ही उनके हाथ लग रही है।

मनचाही सीट पर समाजवादी पार्टी ने टिकट नहीं दिया और अखिलेश यादव ने जब कुर्सी विधानसभा से लड़ाया तो वहां भी भाजपा के कुर्मी नेता साकेंद्र वर्मा को मतदाताओं ने ज्यादा बड़ा नेता मान लिया और उन्हें ही विधानसभा भेज दिया। कहा जाता है कि कुर्सी विधानसभा के यादव और कुर्मी यदि एकजुट हो जाते तो आसानी से राकेश वर्मा चुनाव जीत जाते।

वैसे पूर्व मंत्री राकेश वर्मा ने जिले के लगभग सभी विधानसभा सीटों पर सपा के लिए अपील की थी लेकिन चुनाव के कुछ दिनों पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हुए पूर्व मंत्री संग्राम सिंह और उनके छोटे भाई सुरेंद्र सिंह वर्मा को भी चुनावी मैनेजमेंट का विशेषज्ञ माना जाता है.

“राकेश और गोप को नहीं मिला मनचाहे क्षेत्रों से टिकट, सुरेंद्र ने आसानी से पत्नी को बनवा दिया नगर पालिका चेयरमैन”

समाजवादी पार्टी के लोगों को यह एहसास है कि जो तीन सीटें उन्होंने जिले में विधानसभा की हासिल की थी उसमें सुरेंद्र सिंह वर्मा की भी बड़ी भूमिका थी एक मजबूत कुर्मी नेता के रूप में उनकी काबिलियत को बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बाद समाजवादी पार्टी ने भी स्वीकार किया अन्य वर्गों में भी उनका सम्मान है। इसीलिए तमाम प्रत्याशियों को दरकिनार करते हुए दूसरे दल से आए सुरेंद्र सिंह वर्मा की पत्नी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शीला सिंह को बेहद कम वक्त में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ज्यादा अहमियत दी और उन्हें मनचाहा वरदान देते हुए बाराबंकी नगर पालिका का चेयरमैन बनवा दिया।

जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मंत्री राकेश वर्मा और पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप जैसे दिग्गज नेता भी अपनी मनचाही सीटों से टिकट मांग रहे थे लेकिन अखिलेश यादव ने सीनियर नेताओं को भी उनके मनचाहे स्थानों से टिकट नहीं दिया नतीजा यह हुआ था कि अरविंद सिंह गोप जैसे दिग्गज भी चुनाव हारे और और राकेश वर्मा जैसे मजबूत पकड़ वाले नेता भी विधानसभा पहुंचने से वंचित रह गए.

“लंबे समय से विधानसभा का सपना देख रहे हैं सुरेंद्र सिंह वर्मा, कुर्सी और नवाबगंज हो सकता है लॉन्चिंग पैड”

सुरेंद्र सिंह वर्मा राजनीतिक रूप से समाजवादी पार्टी के अंदर भी तेजी से सशक्त हो रहे हैं सियासी विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में बाराबंकी की कुर्सी विधानसभा और नवाबगंज विधानसभा मैं किसी भी एक पर सुरेंद्र सिंह वर्मा का दावा हो सकता है क्योंकि बीते विधानसभा चुनाव में  सुरेंद्र सिंह वर्मा कुर्सी विधानसभा से अपने परिवार के लिए टिकट चाह रहे थे लेकिन भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो उनके परिवार ने पार्टी छोड़ दी।

नवाबगंज विधानसभा की बात की जाए तो इस विधानसभा पर पहले भी सुरेंद्र सिंह वर्मा की मजबूत निगाहें हैं यहां से ही वह अपने बड़े भाई को कई बार विधायक और मंत्री बना चुके हैं और स्वयं भी चुनाव लड़ चुके हैं।  कुर्सी विधानसभा और नवाबगंज विधानसभा से आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सुरेंद्र सिंह वर्मा को यदि कोई भी संभावना दिखाई पड़ती है तो वह जिले की सियासत से प्रदेश की सियासत में कदम रखने का मौका जरूर हासिल करना चाहेंगे.

“सियासत में कोई किसी का सगा नहीं दल और दिल बदलने में देर नहीं”

सियासत में ना कोई किसी का दोस्त है ना कोई किसी का दुश्मन, हर कोई मौके की तलाश में है ऐसे में आने वाले वक्त में कुर्सी विधानसभा जहां से राकेश वर्मा चुनाव लड़े थे और नवाबगंज विधानसभा जहां से सुरेश यादव विधायक हैं, दोनों क्षेत्र सुरेंद्र सिंह वर्मा के लिए विधानसभा पहुंचने के लिए उपयोगी मंच हो सकते हैं।

जानकार सूत्रों के मुताबिक अखिलेश यादव ने अगर इसी तरह सुरेंद्र सिंह वर्मा पर मेहरबानी जारी रखी तो सपा के कई दिग्गजों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि सुरेंद्र वर्मा बहुत खामोशी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हैं और पूरी शिद्दत से उसे हासिल करने के लिए काम करते हैं उनकी इसी काबिलियत का लोहा उनके विरोधी भी मानते हैं और प्रशंसक भी।

द इंडियन ओपिनियन
बाराबंकी

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