काशी के रक्षपाल देवता बाबा काल भैरव ने छोड़ा कलेवर, बाबा के बाल रुप का हुआ श्रृंगार।

पतित पावनी मां गंगा के तट पर बसी है काशी नगरी। जब बात हम मां गंगा की करते है तो भगवान भोलेनाथ शिव शंभू का नाम जरुर जुड़ेगा। जी हां द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा विश्वनाथ यहां साक्षात विराजमान हैं। काशी को कैलाशवासी बाबा भोलेनाथ का घर कहा जाता है, काशीवासियों की समस्त व्यवस्था के संचालन के लिए बाबा विश्वनाथ ने अपनी जटा से काल भैरव की उत्पत्ति की। बाबा काल भैरव को काशी का रक्षपाल देव भी कहा जाता है। काशी एक ऐसी पवित्र भूमी है जहां अष्टभैरव विराजमान हैं और पूजे जाते हैं।

काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद बाबा काल भैरव का दर्शन अनिवार्य होता है, बिना इनके दर्शन के बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा होता है

मंगलवार की भोर में बाबा काल भैरव ने अपना कलेवर अर्थात चोला छोड़ दिया, पौराणिक मान्यता के अनुसार काशी पर जब कोई बड़ी विपदा आने वाली होती है तो बाबा काल भैरव उसे अपने ऊपर ले लेते हैं, और तभी अपना कलेवर छोड़ते हैं।

सुबह बाबा काल भैरव के मंदिर में घंट-घड़ियाल, डमरु, संखनाद गूंजने लगा, मंदिर से लेकर गंगा घाट तक माहौल भक्तिमय रहा, पूरा मंदिर परिसर बाबा काल भैरव और बाबा विश्वनाथ के हर-हर महादेव के नारों से गूंजने लगा, भोर में 4 बजे बाबा ने अपना पुराना कलेवर छोड़ दिया, इस दौरान आम भक्तों के दर्शन के लिए पट बंद कर दिया गया।

मंदिर के महंत सुमित उपाध्याय ने बताया बाबा काल भैरव का कलेवर लाल कपड़े में बांधकर पंचगंगा घाट की तरफ ले जाया गया. पूरे रास्ते डमरुओं की निनाद , शंखनाद, घंट घड़ियाल की ध्वनि पर यात्रा निकाली गई। पंचगंगा घाट पर पूरे विधि विधान के साथ पतित पावनी मां गंगा के जलधारा में प्रवाहित किया गया।

दोपहर में बाबा काल भैरव का सिंदुर, मोम और देशी घी से लेपन किया गया। बाबा के बाल स्वरुप का परंपरागत तरीके से भव्य शृंगार करके महाआरती की गई, दोपहर करीब 1 बजे भक्तों के दर्शन के लिए पट खोला गया।

50 साल पहले बाबा काल भैरव ने छोड़ा था कलेवर
काल भैरव मंदिर के ब्यवस्थापक महंत नवीन गिरी के अनुसार 50 साल पहले 1971 में बाबा काल भैरव ने कलेवर छोड़ा था। वैसे बातचीत में गिरी ने यह भी बताया कि 14 साल पहले आंशिक रुप से बाबा ने कलेवर छोड़ा था। कार्यक्रम में मुख्य रुप से संतोष पांडे, रमेश उपाध्याय, अमित शर्मा, अभिषेक पांडे आदि लोग मौजूद रहे।

रिपोर्ट – पुरुषोत्तम सिंह,

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