कॉलेजियम ने 3 महिला जजों सहित सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की सरकार को भेजी सिफारिश, जानिये पूरी सूची।

नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए गठित कॉलेजियम ने सरकार को 9 न्यायधीशों के नामों की सिफारिश की है। कॉलेजियम की इस सिफारिश में पहली बार तीन महिला न्यायधीशों के नाम भी सम्मिलित हैं।

अगर कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी मिलती है तो भारत को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिल सकती है। कॉलेजियम ने कर्नाटका हाईकोर्ट की जस्टिस बी वी नागराथन, तेलंगाना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली और गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस बेला त्रिवेदी के नामों की सिफारिश की है।

सिफारिश को सरकार द्वारा स्वीकार कर नियुक्त लिए जाने पर न्यायमूर्ति बी वी नागराथन 2027 तक भारत की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश हो सकती हैं।

कॉलिजियम ने वरिष्ठ वकील पी एस नरसिम्हा के नाम की भी सिफारिश की है। कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी, न्यायमूर्ति सी टी रवींद्र कुमार और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश के नामों की सिफारिश की है।

इससे पहले केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्तियों के आठ पद रिक्त हैं। अगले दो महीनों में सुप्रीम कोर्ट के दो और जज , जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगे । इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की कुल स्वीकृत 34 पदों में से 29 फीसदी पद खाली हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट में पिछले डेढ़ साल से जजों की नियुक्ति नहीं हुई है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 में 8 और 2019 में 10 जजों की नियुक्ति हुई थी। सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में 26 जज कार्यरत हैं, इसमें 25 पुरुष और सिर्फ एक महिला जज हैं।

वहीं अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में हो रही देरी के लिए सीधे-सीधे मौजूदा सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि सरकार उन जजों को नियुक्त करने में देरी कर रही है जिनका नाम हाईकोर्ट कॉलेजियम ने सुझाया है।

कुछ साल पहले भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, टी एस ठाकुर ने भी इस मामले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उठाया था और कहा था कि सरकार द्वारा जजों की नियुक्ति करने में देरी हो रही है। टी एस ठाकुर ने पीएम मोदी से कहा था कि यही मुख्य कारण है जो आज अदालतों में इतने केसेज पेंडिंग पड़े हैं। आपको बता दें 2016 में भी जजों की नियुक्ति को लेकर न्यायालयों और सरकार के बीच विवाद हो चुका है।

रिपोर्ट – विकास चन्द्र अग्रवाल

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