चीन से नाराज सैकड़ों बड़ी कंपनियोंको भारत देगा सुविधाएं, रोजगार आर्थिक विकास को मिलेगी रफ्तार!

रिपोर्ट – अराधना शुक्ला

चीन से बाहर निकलने जा रही कंपनियों को भारत ने की लुभाने की कोशिश।

चीन के शहर वुहान से फैला कोरोना वायरस पूरी दुनिया में लोगों को अपना शिकार बना रहा है। इससे न सिर्फ उनके स्वास्थ्य और जीवन पर नकारात्मक असर पड़ा है, बल्कि दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है। यूके ने तो साफ कह दिया है कि अब वह चीन के साथ व्यापार नहीं करेगा। ऐसे तमाम देश हैं जो चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते को खत्म करना चाहते हैं। जापान ने तो अपनी कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को चीन से से बाहर निकलने के लिए आर्थिक सहायता देने का भी ऐलान किया है। चीन से जो भी कंपनियां बाहर निकलना चाहती हैं, भारत उनको अपने यहां बुलाने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार का नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय अपनी घरेलू मांग के साथ ही वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए देश के भीतर ही नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग के लिए हब की स्थापना करने का काम शुरू कर दिया है। इसको ध्यान में रखते हुए सरकार ने ऐसे पार्कों की की स्थापना के लिए 50 से 500 एकड़ की जमीनों के लिए राज्य सरकारों और बंदरगाह प्राधिकरणों को चिट्ठी लिखी है। तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट और मध्यप्रदेश, उड़ीसा राज्य पहले ही इस प्रकार के पार्कों की स्थापना के लिए हामी भर चुके हैं।


मंत्रालय के उच्च अधिकारी इस विषय में संबंधित कंपनियों के साथ पहले ही मीटिंग कर चुके हैं। इसके साथ ही मंत्रालय के सचिव कई देशों के आयुक्त और प्रतिनिधियों से लगातार संपर्क साधे हुए हैं। इसी सप्ताह सचिव आनन्द कुमार नें अमेरिका-भारत राजनीतिक भागीदारी मंच को भी संबोधित किया गया था। जिसमें उन्होंने अमेरिकी कंपनियों से भागीदारी तथा निवेश के लिए आग्रह किया था। स्थापित किए जा रहे हबों में आरई से संबंधित कई वस्तुओं के निर्माण की क्षमता है। सोलर सेल्स और मॉड्यूल  बनानें के मामले में भारत लगभग 85% उपकरणों का आयात विदेशों से करता है। हालांकि भारत अपने घरेलू मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए आयात होने वाले सोलर सेल्स और मॉड्यूस पर बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाने की घोषणा पहले ही कर चुका है।


ऐसे समय में जब कई सारी कंपनियां चीन से बाहर निकलना चाहती हैं, तब भारत के पास अवसर है कि वह विनिर्माण को सुविधाजनक बनाकर कंपनियों को अपनी तरफ आकर्षित करे। दरअसल भारत सरकार भारत को चीन के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना चाह रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन में कई बाहरी कंपनियां अब वहां से निकलने की फिराक में है। इसके दो कारण हैं, एक तो चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस, जिससे कई देश  नाराज हैं और चीन को इसके लिए दोषी मानते हैं। दूसरा उन कंपनियों को चीन में ज्यादा चुकानी पड़ रही है, जिससे उनके मुनाफे पर असर पड़ रहा है।
जापान ने तो पहले ही अपनी कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को वहां से निकालने की कवायद भी शुरू कर दी है। इसके लिए जापान सरकार उनको आर्थिक सहायता भी मुहैया करवा रही है। चीन में काम कर रही जापानी कंपनियों में से 37 फ़ीसदी कंपनियों ने वहां से बाहर निकलने में दिलचस्पी दिखाई है। जापान और चीन के बीच व्यापार अब आधे से भी कम हो गया है। गौरतलब है कि चीन जापान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है। इस अवसर का लाभ भारत को मिले इसके लिए भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय अपनी तरफ से तैयारी में लगे हुए हैं। इस क्रम में एमएनआरई नें सेक्टर में निवेश को आसान बनाने के लिए उद्योग सुविधा  एवं संवर्धन बोर्ड की स्थापना की है। मंत्रालय की तरफ से निवेशकों का भरोसा बढ़ाने के लिए बिजली खरीद समझौते और आरई क्षेत्र की तीन गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों- पीएफसी,आरईसी और आईआरडीए ने फंड की उपलब्धता को बढ़ाने और रिपेमेंट्स शुल्कों को 2% तक  घटा दिया हैं। सरकार की तरफ से  ऐसे तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, जिनसे भारत  मैन्यूफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित हो सके और बाहरी कंपनियों को अपनी तरफ आकर्षित कर सके।

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