इस नजारे को गौर से देखिए सरेआम बदतमीजी और गुंडागर्दी दिखाते हुए यह शख्स एक आईएएस अफसर है जिन्हें भारतीय संविधान में लोक सेवक का दर्जा दिया है।
लोक सेवक यानी जनता के सेवक लेकिन इनकी बदतमीजी को देखकर लोग यह सोच रहे हैं कि संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी किस मानसिकता के युवाओं को ऑल इंडिया सर्विस इसका हिस्सा बना रही है , ऐसे युवा जो खुद को शासक समझते हैं , ऐसे युवा जो जनता को सरेआम बेइज्जत करने में अपनी शान समझते हैं।
त्रिपुरा के अगरतला के जिला अधिकारी शैलेश यादव की गुंडागर्दी का यह वीडियो वायरल होने के बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया है। मुख्यमंत्री की फटकार मिलने के बाद बताया जा रहा है कि उन्होंने उस परिवार से माफी मांग ली है जिस परिवार की इज्जत उन्होंने सरेआम नीलाम कर दिया।
किसी भी घर परिवार में वैवाहिक कार्यक्रम दो परिवारों की प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा आयोजन होता है बताया जा रहा है कि रात में 10:00 के बाद भी कार्यक्रम चल रहा था लोग भोजन कर रहे थे। इसी बीच डीएम वहां पुलिस बल के साथ पहुंच गए और न सिर्फ उन्होंने खुद लोगों को मारा बल्कि पुलिस से भी खाना खा रहे महिला पुरुष बारातियों पर लाठी चलवाई कार्यक्रम में मौजूद बच्चों और महिलाओं से भी DM के इशारे पर पुलिस वालों ने बदसलूकी की।
बेशर्मी और गुंडागर्दी की सीमाएं पार करते हुए DM शैलेश यादव ने विवाह कराने आए पुरोहित को अपने हाथ से तमाचा जड़ दिया।
वैवाहिक कार्यक्रम के लिए अनुमति ली गई थी लेकिन समय रहते कार्यक्रम समाप्त नहीं किया गया था । कायदे से इस गलती के लिए डीएम को उन्हें नोटिस देनी चाहिए थी जवाब मांगना था और बहुत अधिक अपराध बनता तो मुकदमा दर्ज करके कानूनी कार्रवाई करते ।
लेकिन IAS होने का रौब बहुत से अधिकारियों के सिर पर इतना सवार होता है कि वह घमंड में अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं ऐसे बहुत से अधिकारी देश के अलग-अलग हिस्सों में न सिर्फ जनता बल्कि समूचे सरकारी तंत्र के लिए मुसीबत बने हुए हैं और ऐसे अधिकारियों की कार्यशैली से यूपीएससी की चयन प्रणाली पर भी सवाल खड़े होते हैं ।
इस घटना में तो वीडियो सामने आने के बाद डीएम को सस्पेंड कर दिया गया है और उन्होंने माफी भी मांगी है लेकिन इस परिवार ने जो तकलीफ झेली है नव युगल ने अपनी शादी के दौरान जिस अपमानजनक व्यवहार को झेला है क्या यह लोग और उनके रिश्तेदार इस तकलीफ को जिंदगी भर भूल पाएंगे?
ऐसे आईएएस अधिकारियों को क्या राजनीतिक दलों की जनसभाओं में महामारी अधिनियम और कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन नहीं दिखता क्या वहां भी यह ऐसी ही कार्यवाही की हिम्मत दिखा सकते हैं या सिर्फ आम जनता को ही अपने जूतों की ठोकर ऊपर रखने में इन्हें मजा आता है।
यदि घटना का वीडियो ना होता तो ऐसे जिला अधिकारी का क्या होता ?
जरूरत इस बात की है कि लोग सेवक के भेष में शासक मानसिकता से काम करने वाले अधिकारियों को सरकारी सेवा से बाहर का रास्ता दिखाया जाए।
द इंडियन ओपिनियन के लिए दीपक मिश्रा की रिपोर्ट