बाराबंकी से लखनऊ तक राष्ट्रीय एकता देश प्रेम वकालत और सियासत को रोशन करने वाला चिराग बुझ गया!

पाटेश्वरी प्रसाद-

हमारे बुजुर्ग, सांझी विरासत के प्रतीक, जिले की मशहूर, समाजी, सकाफती शख्सियत एवं सियासतदां पूर्व एमएलसी गयासुद्दीन किदवई अब हमारे बीच नही रहे। अभी कुछ देर पहले बुजुर्ग राजनेता गयासुद्दीन किदवई जी के निधन का समाचार मिला। गयास चचा जैसा नेकदिल, ईमानदार और सच्चा व्यक्ति मैंने नही देखा। मेरे लिए यह हृदय विदारक सूचना है। गहरे सदमे में हूँ। क्योंकि अक्सर मेरी उनसे मुलाकात हो जाती थी। जब भी बड़ेल की तरफ से गुजरता उनसे जरूर मिलता। अक्सर ईद के दिन उनसे मिलने और आशीर्वाद लेने बाबूजी यानी राजनाथ शर्मा जी के साथ जरूर जाता। उनका स्नेह और प्यार हमे मिलता। जब चलने को होते तो चुपके इशारे से अपने पास बुलाते और ईदी देते। मेरे लिए उनका प्यार ही सब कुछ था। अब कहाँ ऐसे लोग जो इस जिले को ऑक्सीजन दे सके।

उनका जाना सांझी विरासत का जाना है। कौमी एकता का जाना है। समाजसेवी का जाना है। अधिवक्ता का जाना है। शोषितों की आवाज का जाना है। प्रखर सोशलिस्ट का जाना तो है ही। मेरे लिए निजी नुक़सान है। एक अभिवावक का जाना है। अब मैं वैचारिक रूप से अनाथ हो गया हूँ। क्योंकि जब भी उनसे मिलता इंसानियत, ईमानदारी की बात करते। देश के हालात और राजनीति की बात करते। वह यह बताते कि कैसे उन्होंने डॉ राममनोहर लोहिया से प्रभावित होकर राजनीति की। राजनीति और वकालत से जुड़े तमाम किस्से अक्सर सुनाया करते थे। जंगे ए आज़ादी का वह दौर उनकी आंखों में साफ तौर पर देखा जा सकता था। बीमारी की हालत में भी उनके चेहरे की चमक कभी कम नही हुई। अब मेरे पास कोई ऐसा ठिकाना नहीं रहा। जीवन और जगत के बारे में जिनसे दिशा मिले।

वह भारतीय सियासत में हमेशा एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे। बेशक वे आज हमारे बीच नहीं रहे लेकिन सियासत और वकालत में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। भारतीय राजनीति में अपने हाजिर जवाबी और बेबाकी के लिए भी मशहूर थे। भारतीय राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विशेष रुचि रखने वाले गयासुद्दीन किदवई से सभी राजनीतिक दलों के बड़े बड़े राजनेता कायल थे। उनका मिलनसार व्यक्तित्व ही उनकी पहचान थी। वह किस्सागोई भी थे। उनके किस्से आज भी हर व्यक्ति की जुबान पर रटे हुए है।

80 साल की उम्र कम नहीं होती। पर अभिभावक का जाना जीवन से लाईट हाउस का जाना होता है। उसकी कमी पूरी नहीं हो सकती है। आज तक जब भी उनसे मिला कोई न कोई प्रेरणा मिलती। शुरुआती वक्त से ही वह समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे। लेकिन अन्त समय तक उन्होंने अपना जीवन समाजवादी विचारधारा पर ही जिया।

मैंने उन्हें दुखी या असंतुष्ट नहीं देखा। बीमार रहे तो भी पूछिए कि कैसे है। तो फ़ौरन जबाब देते बिल्कुल ठीक। कोई दिक़्क़त नहीं। बस थोड़ी कमजोरी है। जिन्होंने हमेशा अभावग्रस्त लोगों की मदद की। उन्हें बेमिसाल वक्ता, कानून विशेषज्ञ, एक बुद्धिमान राजनेता और एक आदर्श नागरिक के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति और सद्दगति दे। और परिवार को दुख सहने की ताक़त।

*ये जिस्म क्या है कोई पैरहन उधार की,*
*यहीं संभाल कर पहना, यही उतार चले।*

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