महाराष्ट्र के ‘हमाम’ में सभी “नंगे”! नेता “शर्मो हया” से दूर- समर्थक और जनता “शर्मसार”,कहां खो गई ‘पार्टी विद डिफरेंस’? THE INDIAN OPINION


देश के नेताओं ने महाराष्ट्र में पिछले दिनों जो कुछ किया उससे न सिर्फ देश की राजनीति शर्मसार हुई बल्कि वह जनता भी शर्मसार हुई जो उन्हें अपना नेता मानती थी।

नेताओं ने “येन केन प्रकारेणन” सत्ता हासिल करने के लिए जिस तरह से नैतिकता और मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाई उसके बाद वह लोग भी शर्मसार होंगे जो साधारण जीवन में हर रोज झूठ बोलते होंगे जानबूझ के हर रोज गलतियां करते होंगे।

लंबे समय से शिवसेना के साथ राजनैतिक दोस्ती रखने के बावजूद कई दिनों तक खींचतान मोल भाव और सौदेबाजी के बाद शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस की नज़दीकियां बढ़ते ही जिस तरह भाजपा ने एनसीपी नेता अजित पवार के साथ सरकार बनाने का खेल किया उससे भाजपा को हर तरह से नुकसान हुआ।

सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद जब देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा सत्ता से वंचित हो रही थी तो उसकी तरफ जनता की सहानुभूति उमड़ रही थी लोगों को यह लग रहा था कि जिस पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीती वह राजनीतिक मर्यादाओं के चलते सरकार नहीं बना पा रही लेकिन जैसे ही लोगों को पता चला कि भाजपा एनसीपी के अजीत पवार के साथ सरकार बना रही है भाजपा के पक्ष में उमड़ी सहानुभूति खत्म हो गई और अचानक भाजपा एक “चालाक विलेन” की भूमिका में नजर आने लगी ।

लेकिन 2 दिन के भीतर ही शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने ऐसा खेल खेला कि भाजपा किसी भी भूमिका में अपनी छवि को बचा नहीं पाई। उसे महाराष्ट्र की सत्ता को भी नहीं मिल पाई और उसने जनता के दिल में अपनी मान प्रतिष्ठा भी गंवाई।

पहले अजित पवार को भ्रष्टाचारी बताने वाले देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें अपना डिप्टी सीएम बनाया उन्हें गले लगाया।
यह बात लोग आसानी से नहीं भूलेंगे कि भाजपा ने महाराष्ट्र में सत्ता की तिकड़म के चक्कर में भ्रष्टाचार से भी समझौता किया।

फिलहाल भाजपा ने तो महाराष्ट्र के चक्कर में अपनी महा फजीहत करवा ही ली लेकिन फजीहत कांग्रेस एनसीपी और शिवसेना की भी हुई।

कट्टर हिंदुत्व छवि के साथ जन्म लेने वाली और पली-बढ़ी शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस जैसे उन दलों के आगे नतमस्तक होना कबूल किया। जिन की नीतियों की वह हमेशा से विरोधी रही और जिन्हें लगातार शिवसेना के नेता राष्ट्र विरोधी करार देते रहे।

वही कांग्रेस और एनसीपी के नेता भी शिवसेना को सांप्रदायिक पार्टी कहते थे शिवसेना की मुस्लिम विरोधी छवि की परवाह न करते हुए सत्ता की मलाई चाटने के लिए कांग्रेश और एनसीपी के लोगों ने शिवसेना के अधीन काम करना स्वीकार किया।

महाराष्ट्र की जनता ही नहीं पूरे देश की जनता भी अपने नेताओं के बदलते रंग देखकर हैरान है। भाजपा कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी ने जिस तरह से महाराष्ट्र में कुर्सी के खेल में अपनी छवि और अपनी सिद्धांतों की खुद ही “ऐसी तैसी” कर दी है उसके बाद लोग यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि सब्जी मंडी और किराने की दुकान पर मोल जल्दी बदलते हैं या फिर सियासत के बाजार में।

कुल मिलाकर जनता भी या देखकर शर्मसार है कि उनके नेता “शर्मो हया” से दूर हैं।

रिपोर्ट -आलोक मिश्रा