मानव जगत के अंतःकरण की शुद्धि का महापर्व है नवरात्रि! The Indian Opinion उमेश यादव का लेख

नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व

नवरात्रि संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ होता है, नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान शक्ति स्वरूपा देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेज लखनऊ के महानिदेशक (तकनीकी) डॉ० भरत राज सिंह बताते है कि नवरात्रि प्रत्येक वर्ष संवत्सर (वर्ष) में 4-नवरात्र होते हैं पौष, चैत्र, आषाढ, व अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। हमारी चेतना के अन्दर सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण- तीनों प्रकार के  गुण व्याप्त हैं। प्रकृति के साथ, इसी चेतना के उत्सव को नवरात्रि कहते हैं। परंतु विद्वानों ने वर्ष में 2-बार नवरात्रों में आराधना का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चै‍त्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से 9 दिन तक अर्थात नवमी तक नवरात्र पूजा होती है।इसी तरह 6 माह बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक देवी की उपासना की जाती है।

डॉ० भरत राज सिंह
स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेज लखनऊ के महानिदेशक (तकनीकी)

सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना आदि करते हैं। इन 9 दिनों में पहले तीन दिन तमोगुणी प्रकृति की आराधना करते हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुणी और आखरी तीन दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना का महत्व है।

माँ की आराधना:
दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती इन तीनों रूपों में माँ की आराधना करते है। माँ सिर्फ आसमान में कहीं स्थित नही हैं, ऐसा कहा जाता है कि, या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते,सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप में ही माँ अर्थात देवी तुम स्थित हो।

नवरात्रि माँ के अलग अलग रूपों को निहारने और उत्सव मनाने का त्यौहार है। जैसे कोई शिशु अपनी माँ के गर्भ में 9 महीने रहता हे, वैसे ही हम अपने आप में परा प्रकृति में रहकर ध्यान में मग्न होने का इन 9 दिन का महत्व है। वहाँ से फिर बाहर निकलते है, तो सृजनात्मकता का प्रस्सपुरण जीवन में आने लगता है।

उमेश यादव, लेखक

देवी दुर्गा की कहानी:

देवी दुर्गा की एक कहानी के अनुसार एक बार देवताओं ने उनसे पूछा कि, देवी आपने इन शस्त्रों को क्यों उठा रखा है? आप अपनी एक हुंकार से सभी दानवों का विनाश कर सकती हैं। तब कुछ देवताओं ने स्वयं ही उत्तर देते हुए कहा कि आप इतनी दयावान हैं, कि आप दानवों को भी अपने शस्त्रों के माध्यम से शुद्ध कर देना चाहती हैं। आप उन्हें मुक्त करना चाहती हैं, और इसीलिये आप ऐसा कर रहीं हैं।

देवी दुर्गा के रूप का गहरा अर्थ:

माँ दुर्गा की कहानी के पीछे यह संदेश है, कि कर्म की अपनी जगह होती है। केवल अकेले संकल्प के होने से काम नहीं होता। देखिये, भगवान ने हमें हाथ और पैर दिए हैं, ताकि हम काम कर सकें। देवी माता के इतने सारे हाथ क्यों हैं?इसका तात्पर्य यह है कि भगवान भी तमाम कार्य करते हैं, और केवल एक हाथ से नहीं, हज़ारों हाथों से और हज़ारों तरीकों से। देवी के पास असुरों का विनाश करने के हज़ारों तरीकें हैं।वे एक फूल से भी अधर्म का विनाश कर सकती हैं, जैसे गांधीगिरी।

इसीलिये देवी अपने हाथों में फूल लिए हैं, ताकि फूल से ही काम हो जाए। और फिर शंख बजाकर, ज्ञान प्रसारण करके भी। अगर वह भी काम नहीं करता, तो फिर वे सुदर्शन चक्र का उपयोग करती हैं। इसलिए, उनके पास एक से अधिक उपाय हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि इस विश्व में परिवर्तन लाने के लिए, केवल कोई एक ही युक्ति काम नहीं करती।आपको बहुत से तरीके ढूँढने पड़ते हैं।

देवी दुर्गा के रूप का असर हमारे रिश्ते और जीवन में:

इसी तरह का प्रतिविम्ब हम अपने रिश्तों में भी पाते है। हम हर परिस्थिति में हठ नहीं कर सकते। यदि आप अपने पिता के साथ हर समय हठ करेंगे और फिर उम्मीद करेंगे कि बात बन जाए तो ऐसा नहीं होगा। कभी प्यार, कभी हठ करना और कभी कभी गुस्सा करने से काम होता है। बच्चों के साथ भी यही है। देखिये किस तरह माँ-बाप बच्चों को बड़ा करते समय तरह तरह की युक्ति और व्यवहार करते हैं। हर बार डंडे का प्रयोग करने से काम नहीं बनेगा। कभी कभी उन्हें प्यार से भी काम करवाना पड़ेगा।

नवरात्रि:  को सही रूप में कैसे मनाएं!

अपने मन और शरीर को विश्राम दें
नवरात्रि आपकी आत्मा के विश्राम का समय है। यह वह समय है जिसमें आप खुद को सभी क्रियाओं से अलग कर लेते हैं (जैसे खाना, बोलना, देखना, छूना, सुनना और सूंघना) और खुद में ही विश्राम करते हैं। जब आप इन्द्रियों की इन सभी क्रियाओं से अलग हो जाते हैं तब आप अंतर्मुखी होते हैं और यही वास्तविक रूप में आनंद, सुख और उत्साह का स्त्रोत है। क्योकि हमारा मन हर समय व्यस्त रहता है। अतः नवरात्रि वह समय है, जब हम खुद को अपने मन से अलग कर लेते हैं और अपनी आत्मा में विश्राम करते हैं। यही वह समय है जब हम अपनी आत्मा को महसूस कर सकते हैं।नवरात्रि वह मौका है जब आप इस स्थूल भौतिक संसार से सूक्ष्म आध्यात्मिक संसार की यात्रा कर सकते हैं। सरल शब्दों में अपने रोज़ाना के कार्यों में से थोड़ा समय निकालिए और अपने ऊपर ध्यान ले जाइए।

अपने मूल के बारे में सोचिये, आप कौन हैं और कहाँ से आये हैं। अपने भीतर जाइए और ईश्वर के प्रेम को याद करके विश्राम करिए।हम इस ब्रह्माण्ड से जुड़े हुए हैं, उस परम शक्ति से जुड़े हुए हैं। जो इस पूरी सृष्टि को चला रही है। यह शक्ति प्रेम से परिपूर्ण है। यह पूरी सृष्टि प्रेम से परिपूर्ण है। नवरात्रि वह समय है, जिसमें आप याद करते हैं कि उस परम शक्ति को आप बहुत प्रिय हैं! प्रेम की इस भावना में विश्राम करिए। ऐसा करने पर आप पहले से अधिक तरोताज़ा, मज़बूत, ज्ञानी और उत्साहित महसूस करते हैं। आखिरी दिन फिर विजयोत्सव मनाते हैं क्योंकि हम तीनो गुणों के परे त्रिगुणातीत अवस्था में आ जाते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षसी प्रवृति हैं उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते है। रोजमर्रा की जिंदगी में जो मन फँसा रहता है, उसमें से मन को हटा करके जीवन के जो उद्देश्य व आदर्श हैं। उसको निखारने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। इन 9 दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए, माँ की आराधना कर प्राप्त करता है। इस तरह से अंतःकरण की शुद्धि कर पवित्र होने का त्यौहार नवरात्रि है।

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