वाराणसी: मां को मिला इंसाफ! नेपाल जेल से छूटा महेंद्र, बीएचयू के छात्र और एनजीओ के प्रयास से हुई रिहाई संभव

वाराणसी। कहते हैं अगर अपने बेटे को बचाने के लिए एक मां उतर जाये तो दुनियां की तमाम बंदिशें छोटी पड़ जाती हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं वाराणसी के अमरावती देवी की. 4 सालों से अपने हाथ में अपने बेटे की नेपाल जेल से छुड़ाने की गुहार लिखी तख्ती लेकर बनारस की जनता से अपील कर रही थीं. एक मां की गुहार पर काशी की स्वयंसेवी संस्था और बीएचयू के छात्रों ने छुड़ाने का बीड़ा उठाया. लंबे कानूनी लड़ाई के बाद नेपाल जेल से महेंद्र वर्मा की रिहाई हुई.
 

वाराणसी में पिछले कई सालों से एक बूढ़ी मां अपने हाथ में तख्ती लिए दर बदर की ठोकरें खाते फिर रही थी। उस बूढ़ी मां का एकलौता बेटा महेंद्र वर्मा नेपाल की जेल में बंद था। 4 वर्ष पूर्व नेपाल में हुए सड़क दुर्घटना में उनके बेटे को दोषी पाते पूर्व नेपाल में हुए सड़क दुर्घटना में उनके बेटे को दोषी पाते हुए न्यायालय ने जेल भेज दिया था। आर्थिक रुप से गरीब मनोज वर्मा को न्यायालय ने हर्जजाना केे  रूप में 5 लाख रुपये जमा करने की बात कही थी, लेकिन परिवार में इकलौता कमाने वाला महेंद्र जेल में बंद था तो पैसे जमा कर पाना उसके लिए असंभव का कार्य था। पैसे जमा नहीं करने के कारण वह जेल से रिहा भी नहीं हो सकता था।

इधर वाराणसी में अमरावती देवी को जब इस बात की जानकारी हुई तो उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। अपने बेटे को जेल से छुड़ाने के लिए वह भिक्षाटन करने लगी। इसी बीच बीएचयू के छात्र यतींद्र इस मुद्दे को आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाना शुरू किया। इसके बाद कुछ समाज सेवी संगठन भी इस मुहिम से जुड़े। एक-एक पाई जोड़ कर करीब ढाई लाख रुपए जमा कर लिए लेकिन अभी ढाई लाख की कमी थी। उसको देखते हुए नेपाल के एनजीओ चौधरी फाउंडेशन से संपर्क किया। एनजीओ के जिलाध्यक्ष रामचंद्र धीतल ने ढाई लाख रुपए का बंदोबस्त कराया और उसे न्यायालय में जमा किया।

पैसे जमा करने के बाद आखिरकार महेंद्र को मुक्ति मिल गई। वह सलाखों के पीछे से निकलकर आसमान की ऊंचाइयों में उड़ने के लिए तैयार था। यतींद्र महेंद्र को अपने साथ लेकर सोनौली बॉर्डर के रास्ते भारत में दाखिल हुआ और अब यह बेटा अपने परिवार से मिल चुका है। परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं है। बूढ़ी मां अमरावती देवी उन सभी लोगों को धन्यवाद दे रही हैं, जिन्होंने इस मुहिम में उनका साथ निभाया।

रिपोर्ट पुरषोत्तम सिंह वाराणसी

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