गांधी जयंती विशेष: Kashmir# Congress# &Gandhi# क्या गांधी के विरुद्ध जा रही कांग्रेस? Article by Alok Kumar The Indian Opinion

महात्मा गांधी जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते थे इसलिए जब देश के बंटवारे की प्रक्रिया शुरू हुई तो उन्होंने खुद जम्मू कश्मीर जाने का फैसला किया और जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री रामचंद्र काक और वहां के महाराजा हरि सिंह से मुलाकात करके उन्हें भारत में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। जिसके बाद महाराजा हरि सिंह ने गांधीजी को भारत में शामिल होने की सहमति दे दी थी, हालांकि औपचारिकता कबायली आक्रमण के बाद पूरी हुई।

कश्मीर के महाराजा हरि सिंह

दरअसल उस समय कश्मीर के प्रभावशाली मुस्लिम नेता शेख अब्दुल्ला पंडित जवाहरलाल नेहरू के करीबी थे और महाराजा हरि सिंह शेख अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू दोनों को अपना शुभचिंतक नहीं मानते थे इसी वजह से शेख अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू के प्रभाव के चलते महाराजा हरि सिंह को शुरुआत में भारत में शामिल होने पर संकोच था लेकिन महात्मा गांधी से वार्ता के बाद उन्होंने भारत में शामिल होने का फैसला आसानी से कर लिया था।

महात्मा गांधी संपूर्ण भारत को एक परिवार मानते थे और इसीलिए उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के रूखे व्यवहार के बावजूद अंतिम सीमा तक उन्हें देश को विभाजित न करने के लिए मनाने का प्रयास किया।

कश्मीर के संदर्भ में भी गांधीजी का स्पष्ट मत था उन्होंने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान मंच से या भाषण भी दिया था कि, उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि जब पूरे देश को हिंदू मुस्लिम दंगों में झोंकने की कोशिश की गई खून खराबा फैलाया गया तब जम्मू-कश्मीर में हिंदू मुसलमानों ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी अटूट रिश्ते को निभाया और शांति व्यवस्था भाईचारा को कायम रखा।

महात्मा गांधी के विचारों को आज के संदर्भ में देखा जाए तो यह स्पष्ट होता है कांग्रेस पार्टी और तमाम ऐसे दल और नेता जो खुद को महात्मा गांधी के विचारों का समर्थक बताते हैं खुद को गांधी दर्शन का पक्षधर बताते हैं वह वास्तव में गांधी दर्शन से दूर है गांधी के विचारों के विपरीत हैं।

जम्मू कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित रामचंद्र काक

कश्मीर के संदर्भ में यदि बात की जाए तो कश्मीर में शेष भारत के लोग ना रह सके, शेष भारत के लोग वहां नौकरी ना कर सकें, शेष भारत के लोग वहां व्यवसाय ना कर सके, वहां के नागरिक ना हो सके ,वहां भूमि न खरीद सके वहां निर्भय होकर जी ना सके ऐसे विभाजन कारी और अन्याय के प्रावधानों को लागू करने वाले धारा 370 और धारा 35 ए को किसी भी हाल में गांधी दर्शन के अनुकूल नहीं कहा जा सकता।

महात्मा गांधी तो देश को एक परिवार के रूप में देखते थे वह तो देश के विभाजन के खिलाफ थे पाकिस्तान के निर्माण के खिलाफ थे ऐसे में कश्मीर में पिछले 70 वर्षों में जिस तरह से शेष भारत के लोगों के लिए प्रतिबंध लगाए गए वहां अलगाववाद और कट्टरता को बढ़ावा दिया गया वह निश्चित ही गांधी दर्शन को और गांधी जी के विचारों को चोट पहुंचाने जैसा था।

गांधी जयंती के मौके पर नेहरू-गांधी परिवार के वंशजों ने भी महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी लेकिन वह यह भूल गए की भारत पर लंबे समय तक शासन करने वाले नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने कश्मीर के मामले में महात्मा गांधी के विचारों को बिल्कुल नहीं माना।

गांधी दर्शन के विपरीत कश्मीर को सांप्रदायिक राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया ना सिर्फ वहां पर लाखों अल्पसंख्यकों हिंदुओं और सिखों का कत्लेआम हुआ बल्कि उन्हें पूर्वजों की जमीन से खदेड़ दिया गया ऐसा अचानक नहीं हुआ कई सालों तक लगातार आतंकवाद और अलगाववाद की तकलीफ भरी प्रक्रिया से ऐसा किया गया और इस दौरान जम्मू कश्मीर का प्रशासन, कांग्रेस के सहयोग से चलने वाली वहां की सरकार और केंद्र की कांग्रेसी सरकारें मूकदर्शक रही।

आतंकियों और अलगाववादियों के समर्थन में सेना और पुलिस को ठोस कार्यवाही करने से रोकती रही। कश्मीर के मूल निवासी लाखों हिंदू और सिख परिवार उजड़ गए बर्बाद हो गए अपमानित होने के बाद जो जिंदा बचे वह भगा दिए गए और सत्ताधारी कांग्रेसी चैन की बंसी बजाते रहे।

इतना ही नहीं जब पिछले दिनों नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद सदस्यों के बहुमत से 370 और 35a को निष्प्रभावी करने का प्रस्ताव पारित कराया तब कांग्रेस पार्टी ने इसे संविधान और लोकतंत्र की हत्या बताया जबकि पूर्व में कांग्रेस ने अपनी सुविधा के अनुसार धारा 370 में स्वयं कई बार परिवर्तन और संशोधन किए थे।

कुल मिलाकर हैरान कर देने वाली बात यह रही की वर्तमान कांग्रेस स्वयं ही धीरे-धीरे गांधी दर्शन के विरुद्ध खड़ी दिखाई पड़ती है इसीलिए वह ऐतिहासिक रूप से आलोकप्रियता का सामना भी कर रही है कांग्रेस के लोग यह नहीं समझ पा रहे की वर्तमान कांग्रेस स्वयं या तो भ्रमित है और या फिर “सुनियोजित” रूप से महात्मा गांधी के राष्ट्रीय चिंतन को मजबूत करने की बजाय कमजोर करने में जुटी हुई है।

गांधी सादगी और ईमानदारी की बात करते थे आज के नेता विलासिता पूर्ण जीवन के बगैर रह नहीं सकते,गांधी सत्य और अहिंसा की बात करते थे आज नेता एक दूसरे के विचारों का विनम्रता से प्रत्युत्तर अथवा विरोध भी नहीं दे पाते, भाषा में ही उनकी मानसिक हिंसा झलकने लगती है गांधी ने राजनैतिक शुचिता की बात की आज के नेता भ्रष्टाचार और परिवारवाद को ही राजनैतिक धर्म मान बैठे हैं, और खास बात यह है कि, गांधी के विरुद्ध गांधी दर्शन के विरुद्ध यह सारे काम करने में कांग्रेस पार्टी अन्य दलों से पीछे नहीं बल्कि काफी आगे दिखाई पड़ती है।

कांग्रेस के नीति नियंताओं को यह चिंतन करना चाहिए कि जिस कांग्रेस पार्टी का इतिहास महात्मा गांधी जैसे महापुरुष से जुड़ा है, जिस कांग्रेसका इतिहास भारतीय इतिहास का हिस्सा माना जाता है, वह कांग्रेस पार्टी देश की सरकारों पर लंबे समय तक काबिज रहने के बाद भी क्यों आज इतनी हताश और निराश है कि वह अपने पुराने नेताओं के मूल्य पर अडिग नहीं रह पा रही है? क्यों वह महात्मा गांधी के विचारों पर मजबूती से नहीं टिक पा रही है ? जबकि गांधी दर्शन को कभी कांग्रेस की मूल विचारधारा का हिस्सा माना जाता था।

यह लेखक के अपने विचार हैं

आलोक कुमार