*370 फिर माया ने मारी बाजी, राजनैतिक नुकसान में अखिलेश, पढ़ने लायक विश्लेषण THE INDIAN OPINION*


जातिवाद का परित्याग करके सकारात्मक राष्ट्रवाद की ओर बढ़ चली भारतीय राजनीतिक धारा में जनसाधारण या फिर कहें कि मतदाताओं के “बदले हुए विचारों” के साथ कुछ दल अभी भी तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं और लगातार अपना राजनीतिक नुकसान कर रहे हैं।
लंबे समय से देश के लिए दर्द बने हुए कश्मीर के मसले पर धारा 370 और 35(A) के प्रावधानों को हटाकर नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बार फिर देश में जनसंख्या के लगभग पूरे हिस्से का दिल जीत लिया, वही बहुजन समाज पार्टी,आम आदमी पार्टी,बीजू जनता दल समेत जिन दलों ने इस मुद्दे पर कश्मीर और शेष भारत के बीच की कानूनी दीवारें गिराने के समर्थन में हाथ खड़े किए,उन दलों को लेकर भी देश के आम जनमानस के दिल में सम्मान पहले से ज्यादा बढ़ गया।
आमतौर पर कई विवादों को लेकर चर्चा में रहने वाली बहुजन समाज पार्टी ने इस मुद्दे पर जिस तरह से सावधानी और समझदारी दिखाई उससे बसपा सुप्रीमो मायावती एक बार फिर बेहद परिपक्व और दूर दृष्टि रखने वाली राजनेता के रूप में देश के जनमानस में अपनी छवि को स्थापित करने में सफल हुई है।
कश्मीर का मुद्दा पूरे देश के लिए भावनात्मक मुद्दा है,भारत का ऐसा कोई भी प्रदेश नहीं है और शायद ऐसा कोई भी जिला नहीं होगा जहां का कोई वीर जवान पिछले सात दशकों में कश्मीर की हिफाजत करते हुए शहीद न हुआ हो, इसके बावजूद भारत के उन हिस्सों के लोग कश्मीर में सामान्य नागरिक के अधिकारों से वंचित थे, जिन हिस्सों के लोगों ने सैनिकों के रूप में कश्मीर के लिए अपनी जान गवाई ,शहादत दी।
कश्मीर के सवाल लंबे समय से देश के आम जनमानस के दिल को कचोट दे रहे हैं लोग बार-बार सोशल मीडिया पर सरकार से यह पूछते हैं कि आखिर क्यों आम भारतवासी कश्मीर में नहीं रह सकता,आखिर क्यों कश्मीर के लिए जान देने वाला फौजी वहां घर नहीं बना सकता? यह सारे सवाल देश की आम जनता को बड़ी आसानी से समझ में आते हैं और वह इनका जवाब देश को चलाने वाले नेताओं से दशकों से मांग रही है।
लेकिन नकारात्मक वोट बैंक की राजनीति में अपना भविष्य ढूंढने की गलती करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों को यह बात समझ में नहीं आई और एक बार फिर कांग्रेस,समाजवादी पार्टी और जनता दल यूनाइटेड ने राजनीतिक पिच पर छक्का मारने की कोशिश में भाजपा के हाथों में कैच आउट होने की भारी गलती की है।
इस मुद्दे पर टीवी का सीधा प्रसारण देख रहे पूरे करोड़ों लोगों ने देश में एक बार फिर से कांग्रेस का वह चाल चरित्र देखा जब वह देशहित के प्रति संवेदनहीन जैसी दिखाई पड़ी,सपा का वह रूप देखा जब वह देश भक्ति,देश हित के मुद्दों पर मुलायम सिंह यादव की परंपरागत लीक से हटकर रामगोपाल यादव के वैचारिक नेतृत्व में वोट बैंक की मजबूरी में कश्मीर से जुड़े कुछ फैसले का विरोध करती दिखाई पड़ी।
विरोध करने वाले दल शायद इस बात का आकलन नहीं कर पाए कि इस फैसले से भारत देश को कितना फायदा होने वाला है यह बात अब साधारण भारतवासी भी समझ सकता है। भारत का मतदाता अब यह जानने लगा है कि इस फैसले से कश्मीरियों और शेष भारतीयों के बीच की दूरी खत्म होने वाली है, कश्मीर पर भारत का प्रभाव बढ़ने वाला है, कश्मीर में विकास और औद्योगीकरण के रास्ते खुलने वाले हैं, कश्मीर में हमेशा के लिए शांति सुरक्षा और खुशहाली के काम होने वाले है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दल भूल गए कि 370 को लागू कराने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी यह कह गए थे कि यह एक” टेंपरेरी यानी अस्थाई कानूनी प्रावधान” होगा जो उचित समय आने पर हट जाएगा।
70 सालों तक अपने उचित समय की तलाश में कश्मीर को बारूद और इंसानी खून से सराबोर कर रहे आतंकवाद और अलगाववाद को पोषित करने वाले इन कानूनी प्रावधानों को कश्मीर में मनमानी और कश्मीर का शोषण करने वाले कुछ नेताओं ने कश्मीर की तकदीर में शामिल कर दिया था। लेकिन 2014 ही नहीं 2019 में भी लगातार देश ने जो जनादेश दिया उसमें पूरे देश ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसे नया भारत चाहिए जो स्वाभिमान के साथ सिर ऊंचा करके दुनिया के विकसित देशों की चाल में पूरे गौरव के साथ आगे बढ़े।
नए भारत को देश के अंदर ऐसा प्रदेश नही चाहिए जिस पर देश का नियंत्रण न हो और उस प्रदेश में मनमानी होती रहे अराजकता फैलती रहे और उसकी कीमत पूरे देश के लोग लहूलुहान होकर चुकाते रहे।
अखिलेश यादव यह भी भूल गए कि डॉ राम मनोहर लोहिया, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे महापुरुष भी कश्मीर और शेष भारत के बीच की दूरियों को खत्म होते देखना चाहते थे।
डॉ अंबेडकर ने तो स्पष्ट रूप से धारा 370 का विरोध किया था। अंबेडकर के नाम पर सियासी खेल खेलने वाले तमाम दलों ने धारा 370 और 35(A) हटाने का विरोध करके कहीं न कहीं अंबेडकर जी के सपनों का विरोध किया और देश ने बहुत ही बारीकी से इस मुद्दे पर सभी दलों और नेताओं की भूमिका को रेखांकित किया है।
देश का मतदाता निश्चित तौर पर आने वाले चुनाव में मतदान करते हुए उन नेताओं और दलों की चाल चरित्र और चेहरे को जरूर याद रखेगा जिन्होंने कश्मीर के लिए बलिदान होने वाले हजारों फौजियों और नागरिकों के जीवन और उनके बलिदान के मूल्य के साथ उद्देश्य का मर्म समझने में भी संवेदनहीनता दिखाई।
इस पूरे मसले पर भाजपा के बाद सबसे ज्यादा राजनीतिक फायदा हासिल करने वाली पार्टियों में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी शामिल हो गई है। बसपा ने 370 और 35(A) के प्रावधानों का हटाने का समर्थन करते हुए एक साथ कई फायदे हासिल किए।
सबसे पहले तो बसपा ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर देश के एक बहुत बड़े जनसंख्या वर्ग का सम्मान पाया बसपा ने डॉक्टर अंबेडकर जी की नीति के अनुसार इस फैसले पर कायम रहते हुए अंबेडकर वादियों के बीच में लोकप्रियता हासिल की। इतना ही नहीं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के बीच भी बसपा ने इस फैसले का समर्थन करते हुए बेहतर लोकप्रियता हासिल की क्योंकि बौद्ध अनुयायी लंबे समय से यह चाहते थे कि लद्दाख को कश्मीर से अलग किया जाए।
इस पूरे मसले पर भाजपा के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने जितना सियासी फायदा हासिल किया उतना ही इस मसले पर “भ्रमित निर्णय”लेकर अखिलेश यादव ने अपना नुकसान कराया।
जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों और उसके बाद लोकसभा चुनाव में लगातार अपना नुकसान करवाने के बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने एक बार फिर अपने राजनीतिक शुभचिंतकों कि गलत सलाह पर कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले पर ऐसा फैसला ले लिया जिससे देश का अधिकांश मतदाता ही नहीं बल्कि अखिलेश यादव के बहुत से समर्थक भी हताश व निराश हुए नाराज हुए।
हिन्दी भाषी क्षेत्र के वह लाखों युवा अखिलेश यादव को विपक्ष का सबसे प्रभावशाली चेहरा और देश का युवा नेता के रूप में देखना चाहते हैं उन्हें भी हजारों फौजियों के बलिदानों से सिंचित कश्मीर के मुद्दे पर अखिलेश का यह रूप देखकर धक्का लगा है, वहीं मायावती ने जरूर इस फैसले के साथ खड़े होकर अपने समर्थक वर्गों में सम्मान और विस्तार की वृद्धि की है। वहीं अखिलेश के राजनीतिक सलाहकारों ने शायद उन्हें कट्टरपंथी मुसलमानों की नाराजगी के डर से 370 के सुधार का विरोध करने की जुगत बताई होगी, लेकिन वह यह भूल गए कि कश्मीर और शेष भारत के बीच रिश्ते सुधारने से सबसे ज्यादा फायदा मुसलमानों को ही होने वाला है क्योंकि कश्मीर की 99 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी को ही कश्मीर की तरक्की का सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा।
नोट: यह विश्लेषण लेखक के अपने विचारों पर आधारित है इसका उद्देश्य किसी राजनीतिक दल संगठन या व्यक्ति की भावनाओं को आहत करना नहीं।

रिपोर्ट – देवव्रत शर्मा